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'सव्वे जीवा न हंतव्वा... न परियावेअव्वा...'
यह भगवान की आज्ञा है। प्रभु-प्रेमी को प्रभु की आज्ञा प्रिय न लगे यह कैसे हो सकता है ?
जिस प्रकार पूनम के चन्द्रमा को देखकर सागर में ज्वार उठता है उस प्रकार प्रभु-भक्त प्रभु को देखकर उल्लास में आता
शरद पूर्णिमा के दिन समुद्र देखा है ? चन्द्रमा को मिलने के लिए मानो समुद्र ऊंचा-ऊंचा उछलता है । भक्त भी भगवान को मिलने के लिए तरसता है।
आपना शिरछत्र गुरुदेव अने अमारा अनन्य उपकारी, ज्ञानसंस्कारदाता गुरु पूज्यपाद आ.भ.श्री वि. कलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा.ना अचानक काळधर्मना समाचार मळतां अंतरमां वीजकडाका जेवो आंचको लाग्यो । क्षणभर तो उंडी गमगीनी साथे अवाचक थइ जवायुं । आ अंगे पत्र क्यां लखवो एनी मूंझवणमां विलंब थयो छे । हवे आ पत्र द्वारा अमे अमारा वती ए दिव्यपुरुषना दिव्य आत्माने भावांजलि अपीए छोए । पूज्यपादश्रीनी वसमी विदायथी वर्तमान जैनशासननो प्रबळ पुण्यसितारो खरी पड्यो छे. आध्यात्मिक जगतनो शत-शत तेजे झळहळतो आदित्य अस्ताचले ढळतां ए जगतमां तो खरेखर घोर अंधाराना ओछाया छवाया छे एवं लागे छे अने लागशे । हवे भले कदाच आपणा प्रवर्तमान संघमां विद्वत्ता अने शासनप्रभावनाना झाकझमाळ घणाय जोवा मळशे, परंतु विशिष्ट प्रभुभक्ति, वैराग्यना रसझरणा, आत्मसाधना अने वात्सल्य - प्रेम - सहानुभूति - करुणा आदि गुणोनो वैभव ए महापुरुष पासे जे हतो एना दर्शन दुर्लभ बनी जशे ।
आप सौ उपर आवेली संघ - समुदायनी क्षेम-कुशलतानी जवाबदारी एज गुरुवर्यनी अदृश्य कृपाथी आप वहन करी शकशो, एमां शंका नथी। मांडवीमां प्रवचनसभामां पण अमे पूज्यश्रीना गुणानुवाद साथे श्रद्धांजलि आपेली। - एज... अचलगच्छीय गणि महाभद्रसागरनी वंदना
१५-३-२००२, मांडवी-कच्छ
(कहे कलापूर्णसूरि - १ ******
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