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कैसे ? उन्हें भगवान बनाने वाले समस्त जीव ही हैं। हम भक्ति करें और भगवान की ओर से कोई प्रतिभाव न आये, ऐसा बनेगा ही नहीं ।
__ भक्त जब हठ पकड़ता है तो भगवान को आना ही पड़ता है । सचमुच तो आये हुए ही है । हम आये हुए भगवान को पहचानते नहीं हैं । भक्त हठ के द्वारा आये हुए भगवान को पहचान लेने की कला जान लेता है ।
अनुत्तर विमान-वासी देव के प्रश्न का उत्तर भगवान द्रव्य मन का प्रयोग करके देते हैं, तो हमें कुछ भी उत्तर न दें, ऐसा कैसे सम्भव हैं ? - भगवान कृष्ण अथवा महादेव के रूप में नहीं आते, परन्तु वे आनन्द रूप में आते हैं। भगवान आनन्द-मूर्ति हैं, सच्चिदानंद हैं । जब जब आप आनन्द से सराबोर हो जाते हैं, तब-तब आप समझ लें कि भगवान ने मेरे भीतर प्रवेश किया है।
भगवान की शर्त इतनी ही है कि आप मेरा ध्यान धरते समय किसी अन्य का ध्यान मत धरना । यदि एकाग्रता पूर्वक आप मेरा ही ध्यान धरेंगे तो मैं आने के लिए तत्पर ही हूं। मैंने कब इनकार किया ? सचमुच तो आपकी अपेक्षा मैं अधिक आतुर हूं ।
राह चलते हुए ज्यों ही पूज्य साहेबजी के कालधर्म के समाचार । मिले त्यों पांव ठिठक गये, मन रुक-सा गया। विश्वास ही नहीं हो पाया । मैंने अन्य महात्माओं से बात की तो विश्वास हुआ ।
पूज्य साहेबजी बहुत अच्छे थे। उनकी की भी याद आती है । उनकी सरलता, समता, सहिष्णुता भी याद आई । उनकी सात्त्विकता और आध्यात्मिकता भी अनूठी थी। श्री शंखेश्वरजी में पूज्य साहेबजी श्री जंबूविजयजी महाराज के पास में नंदीसूत्र का स्वाध्याय करते थे।
- धर्मधुरंधरसूरि १६-२-२००२
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