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बंगलोर- चातुर्मास प्रवेश, वि.सं. २०५१
का
११-८-१९९९, बुधवार
श्रा. व. ३०
. प्रभु के प्रति विनय, गुरु की सेवा आदि ज्यों ज्यों बढती है, त्यों-त्यों आत्म-गुण प्रकट होते हैं और प्रकटे हुए निर्मल बनते हैं।
प्रभु के अनुग्रह के बिना एक भी गुण हम प्राप्त नहीं कर सकते ।
- सम्यग्दर्शन आदि तीनों साथ मिलें तो ही मुक्ति का मार्ग बनता है । एक भी कम होगा तो नहीं चलेगा ।
रत्नत्रयी की प्राप्ति तत्त्वत्रयी के द्वारा होती है ।
तत्त्वत्रयी (देव-गुरु-धर्म) रत्नत्रयी को खरीदने की दुकानें हैं । वहां से क्रमशः दर्शन, ज्ञान, चारित्र मिलते हैं ।
सीरा (हलवा) तैयार करने के लिए आटा, घी, शक्कर चाहिये, उस प्रकार मोक्ष प्राप्त करने के लिए सम्यग्दर्शन आदि तीनों चाहिये ।
भगवान कहते हैं - 'यदि आप मेरी भक्ति करना चाहते हैं तो मेरे परिवार (समग्र जीवराशि) को अपने अन्तर में बसा लें । उसके बिना मैं प्रसन्न होने वाला नहीं हूं ।
. प्रश्न था कि पाप के उदय से दीक्षाग्रहण करने की इच्छा होती है, सुख छोड़ कर दुःख में पड़ने की इच्छा होती है । (१४८ ****************************** कहे कलापूर्णसूरि - १