________________
मैंने एक ही उत्तर दीया, 'आप भला तो जग भला ।'
आप देखते हैं - यहां आकर मैंने झगड़ा नहीं किया । हां, झगड़ा मिटाया है सही ।
वि.संवत् २०२३ में मनफरा में झगड़े बहुत थे । मैंने कह दिया - झगड़े में प्रतिष्ठा नहीं हो सकती । साधु-साध्वियों को गोचरी बंद करने की बात कही । तब वे झगड़ा निपटाने के लिए तत्पर हुए । झगड़ा निपट गया ।
शशिकान्तभाई ने कहा - तब तो झगड़े वाले संघों में आपको बुलाना पड़ेगा ।
उत्तर : हमारी बात मानने की तैयारी हो तो हमें बुलाना । अन्यथा, कोई मतलब नहीं ।
अचानक मालूम हुआ कि बेणप में झगड़े हैं । बड़े आचार्य से भी झगड़ा नहीं निपटा । भगवान की कृपा से झगड़ा हमारे जाने से निपट गया । . 'साधु सदा सुखिया भला, दुःखिया नहीं लवलेश
अष्ट कर्मने वारवा, पहेरो साधुनो वेष ।' यह आप बोलते हैं सही, परन्तु कब ? वस्त्र बदलते समय, संसारी का वेष पहनते समय !
साधु के पास समता का, निडरता का, चारित्र का, भक्ति का, मैत्री का, करुणा का, ज्ञान का सुख है । मैत्री की मधुरता, करुणा की कोमलता, प्रमोद का परिमल, मध्यस्थता की महक हो, वैसा यह साधु-जीवन पुन्य-हीन को ही प्रिय नहीं लगता है ।
पुस्तको खूब ज सुंदर छे. आत्माने ढंढोळता आवा पुस्तको बहार पाडता रहेजो. आपनुं कार्य निर्विघ्ने थाय एवी प्रार्थना..
- आचार्य जयशेखरसूरि
धारवाड, हुबली.
१४२ ******************************
कहे