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- एक ओर चारित्र और दूसरी ओर चिन्तामणि है, कौन बढता है ? चारित्र केवलज्ञान - मोक्ष प्रदान कर सकता हैं। चिन्तामणि के पास ऐसी शक्ति नहीं है । चारित्र इस जन्म में भी चित्त की प्रसन्नता, समता, लोगों की ओर से पूज्यता प्रदान करता है, परलोक में स्वर्ग-अपवर्ग प्रदान करता है ।
चिन्तामणि इन में से कुछ भी नहीं प्रदान कर सकता । चित्त की प्रसन्नता तो नहीं देता है, यदि हो तो उसे भी लूट लेता है । चिन्ता को बढाने वाला चिन्तामणि कहां और चिन्ता-नाशक चारित्र कहां?
इन्द्र तो ठीक, विमान का स्वामी बनना हो तो भी सम्यक्त्व चाहिये । तामलि-पूरण आदि तापस इन्द्र बने, परन्तु पूर्व भव में अन्त में सम्यक्त्व प्राप्त कर चुके थे ।
आचार्य भगवंत द्वारा उपयोग में ली गई कामली प्राप्त हो जाये तो कितना आनन्द होता है ? यह कामली आचार्य भगवंत ओढते थे, इस प्रकार हम गौरवान्वित होते हैं ।
क्या इस चारित्र के लिए गौरव नहीं है ? यह चारित्र अनन्त तीर्थंकरो, गणधरो, तथा युग-प्रधानों द्वारा सेवित है । कितना गौरव होना चाहिये ?
. गुण स्वाभिमानी हैं। बिना बुलाये भी दोष आ जायेंगे । गुणों को निमंत्रित करोगे तो ही वे आयेंगे । आने के बाद भी थोड़ा स्वमान आहत होने पर भाग जायेंगे । गुणों के लिए तीव्र उत्कण्ठा होनी चाहिये । उन्हें बार-बार निमंत्रित करना पड़ता है। मेंहगे अतिथियों को बार-बार बुलाने पड़ते हैं ।
___ अतः हे पुण्यवान् ! असंख्य गुणों की खान चारित्र को पाकर तू प्रमाद मत करना । आचार्य इस प्रकार नूतन दीक्षित मुनि को हित शिक्षा प्रदान करते हैं ।
अध्यात्मसार _ 'भक्तिर्भगवति धार्या' ___ गुणों की प्राप्ति एवं सुरक्षा भगवान के प्रभाव से ही होती है। भगवान की सम्पूर्ण आज्ञा का गृहस्थ अवस्था में पालन नहीं होता । हिंसा निरन्तर चालु रहती है। अतः ध्यान में एकाग्रता नहीं (१२४ ****************************** कहे कलापूर्णसूरि - १)