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ज्ञान की तीक्ष्णता अर्थात् ज्ञान का तीव्र उपयोग । जैसा जाना वैसा ही पालन । जानना वैसा ही जीना । उदाहरणार्थ क्रोध की कटुता जानी । जब जब क्रोध आये, तब तब क्रोध के वशीभूत नहीं होना । यह ज्ञान की तीक्ष्णता है। जब जिस ज्ञान की आवश्यकता है तब तब वह ज्ञान उपस्थित हो जाये, आचरण में आ जाये - वह ज्ञान की तीक्ष्णता कहलाती है। कोई वस्तु लेनी-रखनी हो तो पूंज कर, प्रमाजित करके लेनी-रखनी चाहिये । यह ज्ञान की तीक्ष्णता कहलाती है । यह तीक्ष्णता ही चारित्र है । चारित्र अर्थात् हम अपने स्वामी हैं, ऐसा अनुभव करना, उस प्रकार जीना ।
ज्ञान एकाग्र बनने पर वह ध्यान हो जाता है । जिस समय जो विषय हो उसमें वह एकाकार हो जाता है । 'ध्यानं चैकाग्र्य-संवित्तिः'
- ज्ञानसार एकाग्र बनने में मुझे विलम्ब होता है, किसी भी कार्य में मुझे विलम्ब लगता है, परन्तु जब तक एकाग्र न बनूं तब तक मैं उसे छोड़ता नहीं हूं।
चित्त की चंचलता को दूर करने वाला एकाग्रता पूर्वक का ज्ञान है।
ज्ञानसार में ज्ञान के लिए ज्ञानाष्टक, शास्त्राष्टक, अविद्याष्टक, ज्ञान-फल-शमाष्टक ये समस्त अष्टक दिये गये हैं ।।
जिस प्रकार मार्ग से परिचित व्यक्ति भी जब तक चलेगा नहीं, तब तक इष्ट स्थान पर पहुंचेगा नहीं, उसी प्रकार से गुणस्थानक की समस्त प्रकृतियों आदि को जानने वाला भी जीवन में उन्हें न उतारे तो गुणस्थानों के मार्ग पर आगे बढ़ नहीं सकेगा ।
ज्ञान में एकाग्र बनने के लिए भी विहित क्रियाएं चाहिये । क्रियाएं छोड़ कर सिर्फ ज्ञान से नहीं चलता ।
- मार्ग में आप अधिक समय तक रुक नहीं सकते या तो आप ऊपर जायें या नीचे जायें । नीचे निगोद है, ऊपर मोक्ष हैं। दोनों स्थानों पर अनन्त काल तक रहने की सुविधा है, व्यवस्था है । मनुष्य जन्म आदि मार्ग में आने वाले स्टेशन हैं । स्टेशनों पर मकान निर्माण करने की भूल मत करना । (कहे कलापूर्णसूरि - १ ********
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