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दाएं से घू. मुक्तिचन्द्र वि., पू. प्रीति वि. के साथ वासक्षेप डालते हुए पूज्यश्री, वि.सं. २०३३
५-८-१९९९, गुरुवार
श्रा. व. ८
• जिन शासन की जघन्य आराधना भी सात-आठ भव में मोक्ष में पहुंचा देती हैं ।
. शीलवान्, सत्त्ववान महापुरुषों के कर-कमलों से दीक्षित होने से निर्विघ्न दीक्षा का पालन होता है । वे महापुरुष भगवान के साथ हमें जोड़ देते हैं ।
* भगवान की भक्ति चारित्रावरणीय कर्म का क्षय करती है, ऐसा हम सब को अनुभव है।
- सम्यग्दर्शन एवं सम्यग् ज्ञान जहां हो वहां कभी न कभी सम्यक् चारित्र आता ही है। सम्यक् चारित्र आये तो ही सम्यग्दर्शन एवं सम्यग् ज्ञान सच्चे कहलाते हैं। इन्हें परखने की यह कसौटी है। ___ 'ज्ञाननी तीक्ष्णता चरण तेह'
- अध्यात्म गीता । ज्ञान से चारित्र भिन्न नहीं है। यह जैन दर्शन की विशेषता है । जैन दर्शन के अनुष्ठानों से योग-ध्यान भिन्न नहीं हैं कि जिससे अलग योग-शिबिर करानी पड़े, मात्र उन्हें प्रकट करने की आवश्यकता
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कहे कलापूर्णसूरि - १)