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नामक वस्तु खरीदने के लिए निकले है ?
हेमचन्द्रसूरिजी के योगशास्त्र के बारहवे प्रकाश को देखें - आत्मानुभूति का वर्णन है।
___ यशोविजयजी के उद्गार देखें - 'मारे तो बननारुं बन्युं ज छे' 'मेरे तो बनने का बना ही है, अर्थात् अनुभव का आस्वाद मैंने कर लिया है । 'हुं तो लोकने वात सीखाउं रे'
वाचक 'जस' कहे साहिबा, ए रीते तुम गुण गाऊं रे'
आत्मानुभव इसी जन्म में होना चाहिये, तो ही जीवन की सफलता है । नहीं प्राप्त हो तब तक उत्कण्ठा रहनी चाहिये, तड़पन चाहिये - अभी तक प्राप्त नहीं हुआ, कब प्राप्त होगा? कब प्राप्त होगा ? मेरा समय व्यर्थ जा रहा है, आत्मानुभूति की झलक प्राप्त हुए बिना समय व्यर्थ जा रहा है।
करोड़ रुपयों की दुकान में आप व्यवसाय करेंगे कि ताश खेलेंगे ? आत्मानुभूति प्राप्त हो सके ऐसे इस भव में उसे प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करना चाहिये या पशु-सुलभ भोगों के लिए ?
. दसवी वस्तु है विज्ञान-विशिष्ट बोध, जो भगवान देते हैं । भगवान कभी तो गुरु के माध्यम से आते हैं, कभी किसी अन्य निमित्त से भी आते हैं ।
अभी नवसारी में रत्नसुन्दरसूरिजी ने पूछा था, 'मुझ पर भगवान की करुणा है, यह मैं कैसे मानूं ?' मैने कहा, 'आपने दीक्षा क्यों ली थी ?'
"शिबिर में गया था । भुवनभानुसूरि ने पकड़ लिया, ले ली दीक्षा ।'
_ 'आपको ही क्यों पकड़ा ? किसी अन्य को क्यों नहीं ?' यही भगवान की कृपा है जो गुरु के माध्यम से आती है । गुरु भी तो आखिर भगवान के ही हैं न ?
दुःख की अपेक्षा सुख भयंकर है । अनुकूलता से साध्य से हम चूक जाते है । हम प्रतिकूलता से घबराते हैं । वास्तव में तो यही मित्र है । अनुकूलता से हमारा सत्त्व दब जाता है ।
स्वयं की निन्दा (दुष्कृतगर्दा) सुनने आदि में सत्त्व चाहिये ।
'अणुस्सोओ संसारो, पडिस्सोओ तस्स उत्तारो ।' ऐसी समझ [११८ ****************************** कहे कलापूर्णसूरि - १)