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खडहाकरप्रवचन
दि.२१-०९-१९६७, वाका(का
४-८-१९९९, बुधवार
श्रा. व. ७
- दीक्षा अंगीकार करने के बाद दीक्षाचार्य नव-दीक्षित मुनि को हितशिक्षा दे, जिसमें १५ पदार्थों की दुर्लभता समझाये । बारह पदार्थ तो इस समय प्राप्त हैं, यह कहें तो चल सकता है। शेष तीन पदार्थ प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करें तो ही बारह पदार्थों को पाने की सफलता है ।
आचार्य की देशना श्रवण करके अन्य व्यक्तियों को भी दीक्षा ग्रहण करने के भाव हों । सुन्दर भवन, बढिया फर्नीचर, गाडी आदि देख कर उन्हें प्राप्त करने का प्रयत्न करते हो न? उस प्रकार दीक्षा ग्रहण करने की इच्छा होती है? दीक्षा के प्रसंगों को बार-बार देखने पर उसे प्राप्त करने का मन होना चाहिये ।
. दीक्षा से क्या प्राप्त करना है ? साध्य क्या है ? चलने से पूर्व आप की मंजिल निश्चित होती है । दुकान में धन साध्य होता है। यहां क्या साध्य है ? मोक्ष ? वहां जाकर करेंगे क्या ? डोरे-पाटे आदि करेंगे ? वहां सदैव आत्म-स्वभाव में रमणता करनी है, यह आप जानते हैं न ? आत्म-स्वभाव की झलक नहीं प्राप्त की हो तो वहां वैसे प्राप्त हो सकेगी ? क्या मूल्य देकर हम मोक्ष
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कहे