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प्रतिष्ठा हुई और उसी समय मुसलमानों का आक्रमण हुआ, दुकानों को आग लगा दी, लाखों की हानि हो गई । कर्णाटक में हाहाकार मच गया । आकुल-व्याकुल लोग हमारे पास आये । वहां जाकर हमने चन्दा एकत्रित कराया । आसपास से हुबली, बेंगलोर आदि स्थानों से अनेक लोग आये । कुछ मुसलमान भी आये । अठारह लाख रुपये एकत्रित हो गये । विधि में थोड़ी गड़बड़ी हो जाये तो ऐसी स्थिति भी हो सकती है ।
. प्रश्न द्वार : दीक्षार्थी को पूछे - तू क्यों दीक्षा ग्रहण कर रहा है ? उसके उत्तर से उसकी योग्यता का पता लग जाता है । 'आपके अतिरिक्त कोई उद्धार कर नहीं सकता, इस असार संसार से ।' इसके अतिरिक्त अन्य कोई उद्देश्य नहीं होना चाहिये ।
विनयरत्न ने राजा का वध करने के लिए दीक्षा अंगीकार
की थी ।
वैराग्य अल्प हो तो धर्मकथाओं के द्वारा वैराग्य बढायें । दुःखगर्भित वैराग्य को ज्ञानगर्भित वैराग्य मे परिवर्तित करे । साधु के आचार - नियम बताए । हमारे पू. कनकसूरि महाराज स्पष्ट कहते - 'चाय नहीं मिलेगी, एकासणे करने पड़ेंगे ।'
क्या दीक्षार्थी सचित्त आदि का त्याग करता है ? क्या वह वनस्पति पर पांव रखता है ? कि उसे छोड़कर जाता है ? वह खारी भूमि, पानी आदि का त्याग करता है कि नहीं ? उसके भीतर की परिणति हो तो ही जयणा का भाव जागृत होता है। इस प्रकार परीक्षा हो सकती है ।
अध्यात्मसार प्रश्न : करना है आत्मा का अनुभव तो बीच में भगवान की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर : भगवान के साथ सम्बन्ध हुए बिना आत्मा को नहीं पहचाना जा सकता । श्वेताम्बर संघ व्यवहार-प्रधान है। निश्चय बताने की वस्तु नहीं है, स्वयं प्रकट होने वाली है । ___अतः श्वेताम्बर के पास ध्यान नहीं है यह न मानें । चारित्र हो वहां ध्यान होता ही है, देशविरति में ध्यान अल्प मात्रा में होता है।
कलापूर्णसूरि - १
१०२ ****************************** कहे