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वेश, वि.सं. २०५५
२६-७-१९९९, सोमवार
आषा. सु. १३
पांच द्वार पांच वस्तु के रूप में बताये हैं । अतः ग्रन्थ का नाम 'पंच वस्तुक' है । चार अनुयोगों में यहां चरण-करणानुयोग प्रधान रूप से है । चारों अनुयोग हमारे आध्यात्मिक जीवन को परिपुष्ट बनाते हैं ।
१. द्रव्यानुयोग सम्यग्दर्शन निर्मल करता है । __ द्रव्य-गुण-पर्याय जानने से आत्मा आदि पदार्थों के सम्बन्ध में निःशंक एवं स्थिर बना जा सकता है । आत्मा आदि पदार्थ हमने बताने के लिए अथवा कीर्ति के लिए सीखे, परन्तु स्वयं के लिए तनिक भी नहीं सीखे । यह दीपक सम्यक्त्व कहलाता है । हम अभव्यों जैसे रह गये ।
भेदज्ञान प्राप्ति के लिए यह तत्त्वज्ञान सीखना है ।
जीवों का स्वरूप जानने से उसका साधर्म्य प्रतीत होता है, जिससे समस्त जीवों के साथ मैत्री की जाती है । इसके लिए ही जीव-विचार आदि का अध्ययन करना है।
कर्म, गति अथवा जाति के कारण से जीवों के भेद पड़ते है । चेतना की अपेक्षा से कोई भेद नहीं है। अतः प्रथम जीवों
कहे कलापूर्णसूरि - १
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कहे