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के भय से बाहर निकल जाये तो ? निर्दोष आहार के बहाने भी गुरुकुल-वास से बाहर विचरण नहीं किया जा सकता । गुरुकुलवास अर्थात् गुणरत्नों की खान । यहां अनेक रत्नों की प्राप्ति होती है । गुरुकुल-वास को नहीं छोड़नेवाला गुरु की ज्ञान आदि गुणसमृद्धि का अधिकारी बनता हैं ।
सोलह गुणों से युक्त दीक्षार्थी विधिपूर्वक दीक्षा ग्रहण करके गुरुकुल-वास का सेवन करे तो ही वह गुरु बनने के योग्य बन सकता है।
जे समाचार सांभळवा मळ्या, ए समाचारे दिलने जबरजस्त आंचको आप्यो ।
__ भक्तिमां सतत झुमतुं रहेतुं ए हृदय, सहुने वात्सल्यमां भींजातुं राखतुं ए हृदय, मुख पर सदाय स्मित फरकावतो रहेतो ए चहेरो, पुण्यनी पराकाष्ठाना दर्शन करावतुं रहेतुं ए व्यक्तित्व आजे...
आपणा सहुना वच्चेथी कायम माटे विदाय थई चुक्युं छे, ए मानवा मन कोई हिसाबे तैयार थतुं नथी...
मारा जेवा अपात्र अने अज्ञ पर तेओश्रीए केवी करुणा वरसावी छे ? तेओश्रीना पावन सांनिध्यमां ज्यारे ज्यारे आववा मळ्युं छे, तेओश्रीए वरसी जवामां बाकी राखी नथी...
तेओश्रीनी विदायथी मात्र में - तमे के समस्त संघे ज कंईक अणमोल व्यक्तित्व गुमायुं छे एवं नथी, समस्त मानवलोके कंईक एवं गुमाव्युं छे के जे नुकसानीने भरपाई केम करवी ए प्रश्ननो कोई जवाब मळे तेम नथी...
आ पळे तमारा सहुनी मन:स्थिति केवी हशे ए हुं कल्पी शकुं छु । पण निश्चित भवितव्यता सामे आपणे सह लाचार ज छीए ने ?
अध्यात्मयोगी ए तारक पूज्यश्रीनो आत्मा तो शीघ्र मुक्तिमां बिराजमान थशे ज पण ज्यां होय त्यांथी ए तारकनो आत्मा आपणा सहु पर कृपादृष्टि वरसावतो रहे ए ज शासनदेवने प्रार्थना...
- एज... वि. रत्नसुंदरसूरिनी वंदना
म.सु. ४, नडियाद.१
कहे कलापूर्णसूरि - १ **
रि-१
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