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આધ્યાત્મિક ગુણોના વિકાસ માટે અત્યંત જરૂરી એવી ધર્મ-વાવણી છે : ગુણ-ગુણીની પ્રશંસા
ભા. સુદ-૧૨ १०-८-२०००, रविवार
ખીમઈબેન ધર્મશાળા -: सन्मान समारो :धर्मीचंदजी विनायकिया [विजयवाडा]
यहाँ पर आ कर मुझे बहुत फायदा हआ । मैं तो मानता मानता हूँ कि चातुर्मास में रहना मेरे लिए शिबिर ही बन गई । अनेक प्रकार के धर्माचरण मेरे जीवन में प्रेक्टीकल बन गये ।। ____ अगाधता समुद्र की लज्जा रही है ज्ञान से,
उदारता भी कर्ण की हारी है श्रुतदान से;
सौम्यता को देखकर यह चांद भी करता रुदन,
सूरि कलापूर्ण के चरण युगमें हम करे शत शत नमन.
पूज्यश्री की निश्रामें हम सब एक दूसरों के लिए कल्याण-मित्र बने है ।
5हे, दापूसूरि-3
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