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કામળી, દાંડો, ઓઘો વગેરે મારા’ પણ ભગવાન 'भ।२।' मेj ज्यारेय थयुं ? '®मात्र ॥२॥' मेj ज्यारेय લાગ્યું ?
'सर्वे ते प्रियबान्धवाः, नहि रिपुरिह कोऽपि । मा कुरु कलिकलुषं मनो, निज सुकृतविलोपि ॥
- शान्त सुधारस મૈત્રીભાવના सर्वे तु४ प्रिय बंधु छ, नथी शत्रु ओ; . ઝગડો કરી મન ના બગાડ, જશે સુકૃત ભાઈ !
१६-२-२००२ शनिवार के दिन प.पू.गुरुदेव आ.वि. कलापूर्णसूरीश्वरजी का स्वर्गगमन की बात सुनकर मुझे तो विश्वास ही नहीं हुआ । पर दो-चार बार नाकोड़ा आदि ओर से समाचार ज्ञात होने के बाद ऐसा हुआ कि कुछ क्षण स्व भान नहीं रहा । फिर कुछ क्षण के बाद मानो सारा विश्व शून्य सदृश लगा । फिर उसी विचारधारा में चढते हुए जैसे पूज्य प्रवर श्री गौतम स्वामी को भगवान महावीरस्वामीजी का मोक्ष पदार्पण का समाचार नगरवासी एवं देवताओं के द्वारा श्रवण कर स्व भान भूलकर विलाप करने लगे वही दृश्य में स्व में अनुभव करते हुए आनन्दबाष्प आ गये । अपने सारे साधु समुदाय में ही नहीं बल्कि सारा भारतभर दुःख का अवसर बन गया ।
प्रवर गुरु भगवंत को कौन नहीं चाहते थे ? जीवमात्र के साथ कल्याणमय मंगल वचन शुभाशीष, जिनके सम्पर्क से चाहे साधु हो या गृहस्थ, प्रसन्न होकर लौटते थे । मैं भी स्वयं आप पूज्यश्रीजी के साथ दो दिन में रहा हूं । स्वबन्धु की तरह वात्सल्य दर्शाये, वह मैं अपने स्थूल शब्दों से व्यक्त नहीं करता । - मु. राजतिलकविजय की वंदना
जोधपुर. ।
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