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श्रीमद् भगवद् गीता
१०म अः-१८श श्रः गीताका एकके बाद एक अध्याय साधनाका ही एक-एक क्रम है। १०म अा-सर्व विभूति ज्ञान । ११श अः -परमेश्वरके विभूति मालूम होते ही मनके उदार हो जाने
से विश्वरूप दर्शन । १२श श्रः-विश्वरूपमें आत्माका अनन्तरूप दर्शन करके साधकको
भक्ति वा श्रात्मैकानुरक्तिका चरम विकाश स्वरूप आत्म
ज्ञान लाभ।
१३श :-आत्मज्ञान लाभ होनेसे ही ययाक्रम-प्रकृति-पुरुषको
पृथकता। १४श श्रः -गुणक्रयकी पृथकता। १५श अः -क्षर. अक्षर और पुरुषोत्तम की पृथकता। १६श श्रः -दैवासुर सम्पदकी पृथकता। १७श अः - श्रद्धात्रयकी पृथकता। १८श मा -सन्यासका तत्व अवगत होकर साधक सर्वधर्म परित्याग.
___करके मोक्ष लाभ करते हैं ।
अन्तिम अध्याय हो गीताका ज्ञानकाण्ड है। इससे मालूम . होता है कि क्रियावान साधक अब अच्छी तरह समझ सकते हैं कि योगानुष्ठान करनेमें यही गीता उनका एकमात्र अवलम्बन है।