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श्रीमद्भगवद्गीता .. व्याख्या। जो भक्तिमान, श्रद्धावान् साधक “मैं” होनेके लिये, हमारे कहे हुए इस अमृतमय धर्मोपदेशका ठीक ठीक साधन करते हैं, वे ही हमारे अतिप्रिय हैं। (क्योंकि निश्चय वे साधक 'मैं' हो जाते हैं ) ॥२०॥
इति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिरुत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुन संवादे भक्तियोगो नाम
- द्वादशोऽध्यायः