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रघुवंशमहाकाव्य यह मीठी वाणी-वाला पिंजरे का तोता भी हमारी इन स्तुतियों को दुहराने लगा है।
वैतालिकों की इन स्तुतियों को सुनकर अज शीघ्र ही शय्या छोड़कर ऐसे उठ बैठा जैसे राजहंसों की कलध्वनि से जागा हुआ ऐरावत गङ्गातट को छोड़ देता है। उठकर उसने शास्त्रोक्त विधि से नित्यकर्मों कोसमाप्त किया और कुशल परिचारकों द्वारा उचित वेशभूषा से सजाया गया वह स्वयंवर में स्थित राजसमूह में सम्मिलित हुआ।