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उपोद्घात
XXV है-"क्व सूर्यप्रभवो वंशः क्व चाल्पविषया मतिः"। वे उस वंश का वर्णन करने जा रहे हैं जो सूर्य से उत्पन्न हुआ है, सूर्य उदय होकर जगत् को प्रकाश देता है, फिर तपता है और अन्त में अस्ताचल को चला जाता है । ठीक इसी प्रकार काव्य में भी उन्होंने रघुवंश का पूर्वार्ध में अभ्युदय और उत्तरार्ध में क्षयोन्मुखता का वर्णन अत्यन्त ही सुन्दरता और विशदता से किया है।
इस महाकाव्य में कुल १६ सर्ग हैं । प्रथम सर्ग में राजा दिलीप को सुरभि का शाप, उसके परिहार के लिए वसिष्ठ के आश्रम में जाना, उनकी आज्ञा से नन्दिनी की सेवा का व्रत लेना, दूसरे सर्ग में राजा द्वारा २१ दिन तक नन्दिनी की सेवा, २२वें दिन सिंह-वेश में कुम्भोदर द्वारा राजा की परीक्षा, राजा का नन्दिनी की रक्षा के लिए आत्मसमर्पण तथा नन्दिनी द्वारा पुत्रप्राप्ति का वरदान ।
ये दोनों सर्ग रघुवंश के प्रतिष्ठापक राजा रघु की उत्पत्ति की पूर्वपीठिका रूप हैं। तीसरे सर्ग में रघु का जन्म, अश्वमेध के घोड़े की रक्षा के लिए उसकी नियुक्ति, इन्द्र द्वारा अश्व का अपहरण, इन्द्र और रघु का युद्ध, पराजित इन्द्र का १०० अश्वमेध पूर्ण होने का वरदान । चतुर्थ सर्ग में रघु का राज्यारोहण, दिग्विजययात्रा, विश्वजित् यज्ञ में सर्वस्वदान । पंचम सर्ग में अकिंचन राजा के पास १४ करोड़ स्वर्णमुद्रा के लिए कौत्स का आगमन, रघु का कुबेर पर चढ़ाई करने का विचार, रात में ही कोषागार में सुवर्ण की वर्षा, राजा का सम्पूर्ण सुवर्ण कौत्स को देना और प्रसन्न हुए कौत्स के राजा को तेजस्वी पुत्रप्राप्ति का आशीर्वाद एवं अज की उत्पत्ति ।
छठे सर्ग में अज की विदर्भयात्रा, सम्मोहनास्त्र की प्राप्ति तथा इन्दुमती का स्वयंवर, सातवें में इन्दुमती का स्वयंवर, खिन्न राजाओं का अज पर आक्रमण, अज का सबको परास्त करना । आठवें में अज के सुशासन का वर्णन, दशरथ की उत्पत्ति, इन्दुमती की आकस्मिक मृत्यु, अज का विलाप तथा नवम सर्ग में दशरथ का राज्यारोहण और श्रवणकुमार की मृत्यु ।
दसवें सर्ग से पन्द्रहवें तक ६ सर्गों में भगवान राम का पूरा चरित्र वर्णित है। प्रतीत होता है कि यही भगवद्गुणानुवाद कालिदास को अभीष्ट था जिसके लिए उन्होंने रघुवंश-काव्य की रचना की ।
सोलहवें सर्ग में राम के पुत्र कुश की और सत्रहवें में कुश के पुत्र अतिथि की कथा का वर्णन है। शेष दो (१८, १९ )सर्गों में इस वंश के जिन बीस राजाओं की