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गये। वहाँ से आगे चलकर रघु ने बंगाली राजाओं को जीत कर गंगासागर के द्वीपों में अपने जयस्तम्भ गाड़ दिये।
फिर वहाँ से हाथियों का पुल बनाकर कपिशा नदी को पार कर, उत्कल प्रदेश में पहुँचे और उत्कलों के बताये मार्ग से कलिंग देश में पहुँचे । कलिग के राजा को पराजित करके महेन्द्र पर्वत पर अपना दुःसह प्रताप स्थापित करके, वहाँ नारियल का आसव पीकर सैनिकों ने विश्राम किया। पश्चात वहाँ से समुद्र के किनारेकिनारे दक्षिण की ओर चले। कावेरी को पार कर मलयागिरि की तगई में हो कर ताम्रपर्णी नदी तथा सागर के संगम पर पाण्डथवंश के राजा को परास्त किया; और पाएडय राजा ने प्रणाम करके रघु को मोतियों का हार भेंट में दिया। वहाँ से चल कर केरल को जीतकर पश्चिम के राजाओं को जीता, फिर स्थल मार्ग से पारस में गये और पाश्चात्य यवनों से खूब लड़ाई हुई। जब यवनों को परास्त कर चुके तो वहाँ से उत्तर में गये।
हूण तथा कम्बोजों को जीतते हुए, हिमालय में पहुँचे । वहाँ पहाड़ी गणों से घोर युद्ध करके परास्त किया। फिर कामरूप देश में पाकर वहाँ के राजा से हाथियों को भेंट में लेकर अयोध्या में लौट आये और सर्वस्व दक्षिणा जिसमें दे दी जाय ऐसा विश्वजित् नामक यज्ञ किया। यज्ञ के अन्त में प्रचुर भेंट पूजा देकर सब राजाओं को अपनी राजधानियों में जाने की आज्ञा दे दी।