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ही में सिंह गायब हो गया और स्वर्ग से राजा के ऊपर पुष्पवृष्टि होने गी। राजा ने देखा सामने नन्दिनी खड़ी है, सिंह नहीं है।
धेनु ने राजा से कहा, हे पुत्र ! मैंने माया का सिंह बनाकर तुम्हारी परीक्षा ली है। वर मांगो और मेरा दूध दोने में दुहकर पीमो।
तब राजा ने वंश को चलानेवाला एक यशस्वी पुत्र माँगा और कहा कि माता ! दूध को तो मैं बन्दे के पी लेने पर गुरुजी की आशा प्राप्त करके ही पीना चाहता हूँ। यह सुन नन्दिनी बोर प्रसन्न हुई और दोनों आमम में लौट आये।
गुरु वशिष्ठ बी मी सब जानकर प्रसन्न हुए । राजा को दूध पीने की आशा दी और प्रातःकाल स्वस्तिवाचनपूर्वक राजा को विदा किया। राजा और रानी रथ में बैठकर अयोध्या आये और रानी उदक्षिणा ने बाठो लोकपाठों के अंशयुक्त गर्भ को धारण किया।