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६. शुभ और अशुभ से शुद्ध की ओर ७. शुद्ध कर्म (अकर्म) ८. जैन दर्शन में कर्म-अकर्म विचार ९. बौद्ध दर्शन में कर्म-अकर्म का विचार १०. गीता में कर्म अकर्म का स्वरूप ११. अकर्म की अर्थ-विवक्षा पर तुलनात्मक दृष्टि से विचार
३. कर्म-बन्ध के कारण, स्वरूप एवं प्रक्रिया १. बन्धन और दुःख २. बन्धन का कारण-आस्रव ३. बन्धन के कारणों का बन्ध के चार प्रकारों से सम्बन्ध ४. अष्टकर्म और उनके कारण ५. घाती और अघाती कर्म ६. प्रत्यीत्यसमुत्पाद और अष्टकर्म, एक तुलनात्मक विवेचन . १०८ ७. महायान दृष्टिकोण और अष्टकर्म
११३ ८. कम्मभव और उप्पत्तिभव तथा घाती और अघाती कर्म ११४ ९. चेतना के विभिन्न पक्ष और बन्धन
११५ ४. बन्धन से मुक्ति की ओर (संवर और निर्जरा) १. संवर का अर्थ २. जैन परम्परा में संवर का वर्गीकरण ३. बौद्ध-दर्शन में संवर ४. गीता का दृष्टिकोण ५. संयम और नैतिकता ६. निर्जरा ७. जैन साधना में औपक्रमिक निर्जरा का स्थान ८. बौद्ध आचार, दर्शन और निर्जरा ९. गीता का दृष्टिकोण १०. निष्कर्ष
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