________________
और मोह ये तीन ही जैन परम्परा में बन्धन के मूल कारण हैं। इसमें से द्वेष को जो राग जनित है, छोड़ देने पर शेष राग और मोह ये दो कारण बचते हैं, जो अन्योन्याश्रित हैं।
जैनविचारणा की भाँति ही बौद्धविचारणा में भी बन्धन या दुःख का हेतु आस्रव माना गया है। बौद्धविचारणा में आस्रव तीन माने गये हैं(१) काम, (२) भव और (३) अविद्या। बौद्ध और जैन विचारणाओं में इस अर्थ में भी आस्रव के विचार के सम्बन्ध में मतैक्य है कि आस्रव अविद्या (मिथ्यात्व) के कारण होता है। गीता के अनुसार आसुरी सम्पदा बन्धन का हेतु है। उसमें दम्भ, दर्प, अभिमान, क्रोध, कठोर वाणी एवं अज्ञान को आसुरी सम्पदा कहा गया है।
यह पुस्तक आगम मर्मज्ञ ख्याति प्राप्त विद्वान् डॉ. सागरमल जैन का गहन व गूढ अध्ययन है। इसमें जैन, बौद्ध व गीता में कर्म सिद्धान्त को स्पष्ट किया है।
बैंक ऑफ महाराष्ट्र द्वारा प्राकृत भारती अकादमी को सी.एस.आर. कार्यक्रम के अन्तर्गत सांस्कृतिक कार्यकलापों के अन्तर्गत पुस्तकों के प्रकाशन हेतु सहयोग दिया गया, उसके लिए हम विशेष आभार व्यक्त करते हैं।
प्रकाशन से जुड़े सभी सदस्यों को धन्यवाद!
देवेन्द्रराज मेहता संस्थापक एवं मुख्य संरक्षक प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर