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४. उपादन की अवस्था।
५. भव उत्पत्तिभव ६. विज्ञान ज्ञानावरण, दर्शनावरण, आयुष्य, नाम,
७. नाम-रूप गोत्र और वेदनीय कर्म की विपाक ८. षडायतन अवस्था। ९. स्पर्श १०. वेदना ११. जाति भावी जीवन के लिए आयुष्य, नाम,
१२. जरा-मरण गोत्र आदि कर्मों की बन्ध की अवस्था। ९. चेतना के विभिन्न पक्ष और बन्धन
कर्म-अकर्म विचार में हमने देखा कि बन्धन मुख्य रूप से कर्ता की चैत्तसिक अवस्था पर आधारित है, अतः यह विचार भी आवश्यक है कि चेतना और बन्धन के बीच क्या सम्बन्ध है? आधुनिक मनोविज्ञान में चेतना __आधुनिक मनोविज्ञान चेतना के तीन पक्ष मानता है, जिन्हें क्रमशः (१) ज्ञानात्मक पक्ष, (२) भावात्मक पक्ष और (३) संकल्पात्मक पक्ष कहा जाता है। इन्हीं तीन पक्षों के आधार पर चेतना के तीन कार्य माने जाते हैं- १. जानना २. अनुभव करना ३. इच्छा करना। भारतीय चिन्तन में भी चेतना के इन तीन पक्षों अथवा कार्यों के सम्बन्ध में प्राचीन समय से ही पर्याप्त विचार किया गया है। आचार्य कुन्दकुन्द ने चेतना के निम्न तीन पक्षों का निर्देश किया है- १. ज्ञान-चेतना २. कर्मचेतना और ३. कर्मफलचेतना। तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर ज्ञान-चेतना को चेतना के ज्ञानात्मक पक्ष से, कर्मफलचेतना को चेतना के भावात्मक (अनुभूत्यात्मक) पक्ष से और कर्म-चेतना को चेतना के संकल्पात्मक पक्ष के समकक्ष माना जा सकता है।
कर्म-बन्ध के कारण, स्वरूप एवं प्रक्रिया
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