________________
७७० ]
[ મહામણિ ચિંતામણિ
३८.
४, ८, १०, २ ए क्रमे २४
वेसमणु
पुंडरियज्झयणु जंभग सुर जिउ निगुरउ पडिघउ आषीणी उलंभउ परिच्छवइ दुमपत्तय
तीर्थंकरनी प्रतिमाओ ते मंदिरमां स्थापित छे. वैश्रमण-कुबेर 'पुंडरीक' नामे अध्ययन 'तिर्यंग-जुभंक' नामनी देवजाति जीव नगुरं-गुरु वगरनुं पडघो-गोचरीनुं पात्र, प्रतिग्रह अक्षीण-अक्षय ओलंभो–उपालंभ-ठपको प्रीछवे-परख करावे 'द्रुमपत्रक', उत्तराध्ययनसूत्रना १०मा अध्यायनुं नाम क्षपकंश्रेणी, आत्माना ऊर्ध्वगमननी जैन संमत विशिष्ट प्रक्रिया 'श्रेणिक' (राजा) प्रमुख समदृष्टिथी अतिमुक्तक (कुमार) त्रिपृष्ठ (महावीर स्वामीनो १८मो पूर्वभव) विदारित-फाडेलो सिंहनो जीव आणंद श्रावकने आर्जव० श्रावस्ती (नगरी) केशीगणधर (पार्श्वनाथ-शिष्य)
खवगसेणी
सेणियपमुह समद्रेठिं अइमुत्तउ त्रिविट्ठि
माटे
वियारिय सीहजिउ आणंदु . अजव० सावत्थिय केसी रेसी खेड-मडंव पावस तिमरू पूरु सूरु बोहेवा दिवसरम दिउ खिवसमउ हेवाउ लागु
बन्ने विशिष्ट ग्राम-प्रकार वर्षावास-चोमासु तिमिरने पूरा करनार सूर्य बोध आपवा देवशर्मा द्विज अन्तिम समय (?) हेवाक-टेव लागो-वळतर