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શ્રી ગુરુ ગૌતમસ્વામી ]
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तिहुं तिहुं नियविजविकासू केवल पुढविं गरुया आगम देव विमाणी विसथारो समवसरण सालो किंकिल्लि
किरि पामुक्खो
ततु
दिठवाउ
वास पोरिसि
त्रण-त्रण निज-विद्या विकास केवलज्ञान पृथ्वीमां वडा, गौरववाळा, आगमन वैमानिक देव विस्तार तीर्तंकरनी धर्मसभा शाल-कोट अशोक वृक्ष किल-खरे (अव्यय) प्रमुख-वगेरे तत्त्व दृष्टिवाद-द्वादशांगीरूप जैन आगम चंदनादि द्रव्यो- चूर्ण पौरुषी–जैनप्रसिद्ध पुरुषप्रमाण छायाप्राप्त कालविशेष पादपीठ पर संख्यातीत असंख्य भवांतरो-पूर्वभवो छद्मस्थ-केवलज्ञान पूर्वेनी अवस्था । केवलज्ञानी श्रुतकेवली-दृष्टिवादना ज्ञाता बे उपवासना पारणे बे उपवास करे विशिष्ट सिद्धिओथी समृद्ध यश होड, स्पर्धा कौतुक शुभ ध्यान त्रण पंक्ति पावडीए-पगथिये तापस स्थूलकाय विद्यचारण-जंघाचारणनामे लब्धि
पयठणी संख्यातीत भवंतर छदमत्यु केवली सुयकेवली छट्टि तपु पारइ लबधिसमिद्धो जसु तुडि कउतिगु सुहज्झाण तिणि ताली पावडिय. तावस थूलतणु चारणलबधि
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