________________
શ્રી ગુરુ ગૌતમસ્વામી ]
इम मिलिया विप्र सहससंख तिहं वेद वखाणहिं मंडहिं जन्न करंति होमु परमत्थ न जाणहिं । इणि अवसर जिण वद्धमाण केवल पावेई लाभ जाणि जगनाह तिहां तक्खणि आवेई
वस्तुः गाम गुब्बरि गाम गुब्बरि विप्र वसुभूइ तासु पुत्त पुहविं गरुया इंद्र- अगनि - वायभूइ भणियइ । वर वेयविद्यागुणहं जन्नकाजि धरि ते जि गणियइ || पावापुर सोमलतणइ मिलिया बंभण लोय । वीरजिणेसरु आवियउ सहु कोय
प्रथम भाषा ॥
वीरजिणेसर आगम जाणी तक्खणि आवहिं देव विमाणी । पुर पर सिरि जोयण विसथारो समवसरण मंडहिं जगि सा रुष्प - कणय - रयणुतम सालो कणय - रयण-मणिसिहर विसालो । छत्त चमर किंकिल्लि पहाणू जाणीजइ किरि अमरविमाणू तहिं रूणझूण किं महाधज लहकइ धूपघटी घण गंध महक्कइ । देवकुसुम - परिमल महमहए सुरदुंदुहिं सुणि जणु गहगहए तहिं वइसी जिणवर वधमाणू करइ अमियमइ वाणि वषाणू । उरावहिं देवी देव तुरंता दीसहिं गयणि विमाण फुरंता एक हिं विप्र-आहुति लेवा अरिरे! पेखहु आवहि देवा । सुरगणु जिदिसि जाए, तउ सर्वज्ञ भणी जणु धाए
तउ इंद्रभूति भणइ मुझ टाले सर्वज्ञ कोई नहीं इणि काले । मूरष लोक भणी जणु धाए, अहवा करिसु निरंतर (निरुत्तर) जाए एम भणी आविउ इंद्रभूइ, चित्ति चमक्किउ देषि विभूइ । किं इहु साच सर्वज्ञ होइ, किं वा इंद्रजाल इहु कोइ
तउ जिणवरि आवतउ बुलायउ हो इंद्रभूति ! भलई तुं आयउ । सो चिंतइ किमु नामु वियाणइ, अहवा कवणु जु. मुझु न जाणइ पुण जइ चित्ततणउ संदेहो, कहइ तु मानउ सर्वज्ञ हो । तउ जिणि तसु मनि संसउ जाणि, तक्खणि भंजइ वेद, वखाणी
तं सुणि गोयम छ ( छा) त्रसहित्तो, वरिसि पंचासा लेइ चरित्तो । सेस उवज्झाय इणई क्रमि आवइ, (१/२) गयसंसय सवि संजमु पावइ
वस्तु
वीर जिवर वीर जिणवर करइ वक्खाणु
देवासुर मिलिय सवे मणुयसंख नवि कोइ पमइ ॥
इंद्रभूति अभिमानि चडी वादकरण जिणपासि आवइ ।।
॥७॥
॥८॥
||Ell
119011
119911
119211
119311
119811
119211
॥१६॥
119011
119311
[ ७६३