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________________ महाजनवंश मुक्तावली. ६१ बणा लिये, तब मंत्रीनें, अपने घोडोंकी घुड़ शाल, माणक चौक ( रांघड़ी), में थी, उहां आचार्यकों, चौमासे रक्खा, चौरासी गच्छके सब श्रावक, यहां आते थे, और धर्म ध्यान होता था, संसार त्यागके बहुत लोग साधु होगये, अनेक बाइयोंनें, साधवीपणा लिया, उनके धर्म ध्यानके लिए, अपनी गऊशाला दी, जो कि अब बडा उपासरा, व छोटा उपासराके नामसें, प्रसिद्ध है, से। १६२५ का चतुर्मास संघके आग्रहसें, बीकानेरमें करा, प्रतिमा निंदक मतको फैलतेकों उपदेशद्वारा परास्त करते गुजरातके. तरफ बिहार किया, कुछ दिनों बाद श्रीबीकानेरसे व्यापारी बम कर्मचन्द लाहोर नगरमें बादशाह अकब्बरशाहके पास गया एक दिन बादशाहने करमचन्दसे पूँछा की करमचन्द धर्म सबसे बडा कौन है करमचन्द बादशा-. हका आशय समझ गया क्योंके बुद्धिका सागर परम जैनतत्वका जाणकार सम्यक्त्वी था तब बोला (दोहा) बडाधर्म महमंदका, तातें शिव कछु न्यून,. एकण राजा बाहिरो, सबसे जैन जबून, ।१। बादशाह अकब्बर, इस दोहेके अर्थको खूब समझ गया के, करमचन्द बडा सायर, जैनधर्मका एक नररत्न है, तब पूच्छा अय करमचन्द तुम किस अबलियाके, मुरीद हो, करमचन्द बोला, हुजूर सिलामत श्रीजिनचन्द्रसूरिःका, बादशाहको जैनधर्म सुणनेकी और ऐसे पुरुषके दर्शनकी चाह भई, तब अपने उमरावोंके संग, विनती फुरमाण खौस कलम लिख भेजी, गुरू विचरते २, लाहोर पधारे, बडे हगामसें बादशाहने सन्मुख आकर कदम पोशी करी, गुरूनें धर्मोपदेश करा, उस दिनसें बादशाहको, धर्म रुचि उत्पन्न हुई, हमेश व्याख्यान सुणते २ मदिरामांस, तथा कन्द मूलका, यावज्जीव त्याग करा हिंसाका त्याग अमलदारीमें करवाया, यावज्जीव सबपाणीका त्याग कर, एक गंगाजल बरताव करणेको वाकी रक्खा, परस्त्रीका यावज्जीव त्याग करा, जैनधर्मकों सब धर्मोंसे श्रेष्ठ समझणे लगा, ऐसी सम्यक्त्त्वकी श्रद्धा, प्रगट हुई, । तब बादशाहनें गुरू अपना मान कर चवर छत्रादि आपके सब राजचिह्न नजर किये, गुरूनें कहा, त्यागियोंको ये उपाधि नहीं चाहिये, वाद० आपका त्याग सदा कायम है, आपने फरमाया मूर्छा है सो परिग्रह है, आप मूर्खा रहित हैं, क्योंके देव तत्वका पद हो, करमच का, बादशाहको लिनिकी चाह भई,
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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