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________________ - महाजनवंश मुक्तावली. लणा मुशकिल है, इस चिन्तामें निद्रा आगई, तब स्वप्नेमें, दादा गुरूनें, दर्शन दिया, और फरमाया के, हमारा धुम कराणा गाम गडालेमें, (नाल)में, फागुण वदि. अमावस सोमवार को, वडका दरखत फटके, सवापहर दिन चढ़े, देराउरके निज चरण यहां प्रगटे गें, सत्य स्वरूप जाणना, प्रभात समय, मुल्कोमें कागद भेजादिया, बहुत संघ इकठ्ठा हुआ, सं. १५८३ में, उस मुजब चरण प्रगटे, संब संघपर, आकाशसें, केशरकी वर्षा हुई, नागराजने धुंभ कराकर, चरण थापन करे राव वीकेजीके संग, मंडोवरसे, भैंरू की मूर्ती आई थी, वह कौड़म देसरपरथापन करी थी, भैंरूंने स्वप्नमैं, राव जैतसीजीकों, कहा शहरकी प्रजा, मेरी यात्रा करणे आवे, सो मेरे गुरू, दादासाहिबकी हाजरी मेला किया करे, कारण ५२ बीरोंके मालक दादा गुरुदेव है, राव जैतसीजीनें, भादवा सुदी १३ कों, वैसाही मेला भरवा दिया, अभी यात्रा हुआ कस्ती है, नागराजमंत्रीनें, नम्गासर गांम बसाया, राव जैतसीजीके, पाट, राव कल्याणसीजी, विराजे, इन्होंने नागराजके पुत्र, संग्रामसिंहको, अपना मंत्री बनाया, श्री जिनमाणिक्य सूरिःकों संग ले, सर्जेजयादि तीर्थोंका संघ निकाला, एकएक रुपया, एक थाल लड्डूकी लांणी बांटते केशरिया नाथके दर्शन कर, चित्तोड़ आये, राणा उदयसिंहनीने, बडा सन्मान दिया, वीकानेर नरेश बडे प्रशन्न हुए, संग्राम सिंहके करमचन्द पुत्र हुए, सो बडे बुद्धिमान, शूरवीर, दातार उत्पन्न हुए, -ये महाराजा रायसिंहजीके मंत्री हुए, इन्होंके वर्तमानमें त्यागी वैरागी क्रिया उद्धारी, श्री जिनचन्द्र सूरिःजीकी, आणेकी वधाई करमचन्दको, मल्ल कवीने दी, तब सवाकोड़का सिरो पांव, वधाई मैं, कर्मचन्द मुंहतेने दिया, बडे महोत्सवसे वीकानेरमें सामेला किया श्री संघका कराया हुआ उपासरा, श्री चिन्तामणि स्वामीके मन्दिरके पासमें जोथा, सो घरबारी महात्माओंने, अपने घर १ नवहाथी दिया नरेश सो तो मदसें मतवाले, नवे गांम बगसीस लोकनित आवे' हाले । एराकीसौ पांच सो तो जगसगलो जाणे । सवाकोड़कों दान मल्ल कवि सच्च वखाणे १ कोई राव. न राणा करसके, संग्राम नंदन किया, युग प्रधानके नाममें, करमचन्द इतना दिया, ॥२॥
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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