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________________ __महाजमवंश मुक्तावली. स्वरूप आप दरसाते, तीर्थकर परमात्माके आठ प्रातिहार्य, चौतीश अतिशय बतलाये, जैसे वे, देवताके समवशरण सोनेके कमलोंपर चलणे आदि, विभूति रहते, तीर्थकर जैसे वीतराग है, तैसे मैं मेरी भक्तिसें, इस राज्य चिन्होंसें, उपासना कर, जन्म सफल मानूंगा, आप तो दुनियांसे तार्क हो, लेकिन बादशाह राजादिक सेठ सामन्तोंके गुरू, परम चमत्कारी प्रभावीकपणेसें, आपकों जिन पद है, ( ठाणांसूत्रमें ५ जिनः फरमाया है ) आप धर्मकी जहाज हो सदा मदके लिए, आपके शन्तानोंके साथ, मेरी भक्तिका निशाण कायम रहै, तब करमचन्दनें अरज करी, हे पूज्य, राजा भियोग है, जिसपर भी जैन धर्म की दुनिया मैं आडम्बर महिमा दीखेगी सब श्री संघ इस बातसें, आनन्द मानेंगें, तब गुरूने मौन करा, बादशाह इन्होंके शिष्य श्री जिनसिंह सूरिःको, तखत बिठलाकर राज्य चिन्ह संग कर दिये, और मुल्कों मैं वन्दा वणीका फुरमाण लिखा दिया, माही मुरा तब दिया, ये अकबरका मुरातब बीकानेरके बडे उपासरेमें, करम चन्दनें भेजा दिया, श्री गुरू महाराजके साधु लब्धिवंतने कानी की टोपी आकाशमें ठहरी हुई को , ओघेसें उतारी, तीन बकरी बताई, अमावस की पूनम कर दिखलाई, इत्यादि चमत्कार दिखलाकर, सब तीर्थोंकी रक्षा के लिये जगह २ बादशाहनें अपने सूबेदार जागीर दारोंपर हुक्मनामा भेजा दिया और हिन्दमें अमारी उद्घोषणा छ महिना एक वर्षके वास्ते जाहिर कस चैत भादवा आसोज चौदस आठम अमावस पूनम हुमायूंका . जन्म दिन मरणेका दिन अपना जन्म दिन राज्यका दिन इत्यादि मिला करके तथा हुमायूं बादशाहनें बलात्कार आर्य लोकोंकों मुसल्मान वणाना सुरू कराथा वह अकबर के दिलसें गुरूनें मिटादिया बादशाह हुमायूने सब भेष धारियोंकों बलात्कार गृहस्थी बनानेकी आज्ञा दीथी इसमें स्वामी, सन्यासी, वैरागी, जती लोग, बहुतसे घरबारी बन गये थे, आत्मार्थी त्यागी लोकोंने बहुतोंने प्राणत्यागे दिया था, बहुत त्यागी रहनेवालोंने शिर पर वस्त्र बांध लंगोटबद्ध महात्मा होगये थे, इत्यादिक जुल्म करमचन्दके कहणे मुजब, श्री जिनचन्द्र सूरिःजीने बादशाहको उपदेश दे देकर, बन्द करवादिये, सब मतोंके अवलियोंसें, सत्संग करणा, अच्छा समझ,
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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