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महाजनवंश मुक्तावली.
१२ व्रत सम्यक्त्व युक्त ग्रहण करा, पद्मा बेटी थी, तब दादा श्री जिनदत्त सूरिःने आशीर्वाद दिया, हे राजा बोहित्थ जहांतक तेरा वंश मेरी आज्ञा के मुताबिक चलेगा, खरतर गच्छकी भक्ति रक्खेगा, उहांतंक राज्यकार्यमें तेरी शन्तानका मानप्रतिष्ठावन्त, एक न एक, सदा के लिए रहेगा, ठाठका मालिक तेरा वंश, पाटका मालक राजा रहेगा धर्मसे वेमुख नहीं होंयगें उहांतक, लेकिन हे राजा तुम पर भवकी नींव लगावो, तुम्हारी आयु थोड़ी है, तब बोहित्थजीका बडा बेटा जिसने जैन धर्म नहीं धारा, उसकों राज्य पदवीका न्युवराज बणाया, इस वक्त चित्तोड़के किल्लेपर, दिल्लीके बादशाहकी फौज आई, राणा रायमल बोहित्थ राजाकों अपनी सहायतापर बुलाया, बोहित्थ राजाने दादा साहिब के वचन याद किये, गुरूनें कहा, आयु थोड़ी है, सोमोंका आय बना है, तब सातों पुत्रोंकों, द्रव्य दे देकर, मारवाड, गुजरात, कच्छ देशकों जाणेका हुक्म दिया, और आप श्री कर्णकों देवल वाड़ेका राज्यतिलक देकर, युद्धमें चढ़ गये, उहां चारों आहारका त्याग कर, बादशाहसें युद्ध किया, बादशाहकों भगा दिया, मगर आप ११ से सोनहरी बंधसे, युद्धमें अरिहन्तदेव और परम गुरू जिन दत्तसूरि; जीका, ध्यान करते, मरके व्यन्तरनिकायमें, बावन बीरोंमें हनुमन्त वीर हुए, जिन्होंकी शक्ति पूनरा सर गांममें प्रगट है, और जिन दत्तसूरि : जीकी सेवामें, हाजिर रहने लगा, इन सात पुत्रोंकी शन्तान बोहित्थरा, वड़की शाखा ज्यों धन और जनसें विस्तार पाये, अब राजा श्री कर्णके ४ पुत्र उत्पन्न हुए, समधर १ बीरदास २ हरीदास ३ और उद्धरण ४ श्रीकर्ण सूरबीर इसनें युद्ध बलसें मछेन्द्र गढ़का राज्य लेलिया, एक समय बादशाहका खजाना जा रहा था, तब पिताका चैर याद कर, खजाना लूट लिया बादशाहकों, खबर हुई, तब फौज भेजी, उस लड़ाईमें राणा श्रीकर्ण काम आया, बादशाही फौजनें मछेन्द्र गढ़ कबजे किया, उस समय राणे श्रीकर्णकी राणी, रतनादे, कुछ रत्न संग ले, चार पुत्रोंको संग लेकर, अपने पीहर खेडीपुर जा रही, और अपने पुत्रोंकों, कला अभ्यास कराते, २ पण्डित वणालिये, एक दिन रातको सोते हुए,
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