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________________ ५६ महाजनवंश मुक्तावली. हुआ, मुहम्मद भाग गया, राणे रतनसिंहनें, सगर राणा बीर सामन्त, ऐसा पद दिया, सगरनें मालव देश ताबे कर लिया, कुछ मुद्दतके बाद गुजरातका मालिक, वह लीमजात अहमद बादशाहनें, राणा सगरकों, कहला भेजा कि मेरी सलामी, और नौकरी मन्जूर कर, नहीं तो मालवा छीन लूंगा, सगर करडा जबाब देदिया, अब इन्होंके युद्ध हुआ, अहमद मग गया, गुजरात सगरनें अपने आधीन कर लिया, कुछ मुद्दत पीछे दिल्लीका बादशाह गौरी - साह, और राणा रतनसीके आपसमैं तनाजा हुआ, गौरीशाहकी फौज चित्तोड़ पर आई, उस समय राणेजीनें सगरकों बुलाया, सगरनें आपस में - मेल करा दिया, बादशाह से २२ लाख रुपये दण्डके लेकर, मालवा गुजरात सगरनें बादशाहको पीछे दे दिये, उस वक्त राणेजीनें सगरकी बुद्धिमानी, और सखावत देख सगरकों मंत्रीश्वरपद दिया, सगर पीछा देवल वाडेंमें रहने लगा, इसका चरित्र बहुत है, ग्रन्थ बढणेके सबब नहीं लिखते हैं धर्म इन्होंका शैनमत था, सगरके पुत्र बोहित्थ देवल वाड़ेका राजा हुआ, बड़ा शूर वीर अकलवर था, सम्बत् इग्यारह सताणवेमें श्रीजिनदत्तसूरिः देवल वाड़ेमें पधारे, गुरूके पास राजा बोहित्थ आया, गुरूने धर्मोपदेश दिया, राजा बोहित्थ पूछने लगा, हे गुरू मुसल्मानोंनें, बडा जुल्म उठा स्क्खा है, और ये बड़े जुल्मी है, सो हमारे राज्यकी क्या दशा होगी, गुरूनें कहा, जो तुम हमारे श्रावक बनो तो, सब वृत्तान्त कह देता हूं, बोहित्थ राजा बोला, गुरूमहाराज श्रावक होनेसे, व्यापार करणा होगा, शस्त्र डाल देणे होंगे, राजापणा चला जायगा, गुरूनें कहा, हे राजा, तुमको संसारके स्वरूपका, ज्ञान. नहीं, हाथीका कान, पींपलका पान, जैसा चञ्चल एसी राजलक्ष्मी चञ्चल है, चक्रवर्त्तके पुत्रके पास कर्म वस १ घोड़े नहीं मिलते हैं, इतने राजपूत वसते हैं, क्रोड़ो, उसमैं राजा कितने हैं, वह विचारो, और मैं तुम्हारे शन्तानोंकों सदाके वास्ते, लक्ष्मी पुत्र बना देता हूं, इतना सुनते ही, बोहित्थ राजानें तत्वकों समझ, जैन धर्मको ग्रहण करा, बोहित्थ राजाकी राणी, बहु रंगदे, जिसके ८ पुत्र थे, बडा श्रीकर्ण १ जेसा २ जयमल्ल ३ नान्हां ४ भीमसिंह ५ पदमसिंह ६ सोमजी ७ पुण्यपाल ८ इस तरह सातों पुत्रों समेत,
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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