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________________ - महाजनवंश मुक्तावली. - रहो, असंख्या दल तुमारे पीछे आजायगा, शत्रु सब भग जायगे, हमारे कहे हुए वचन चूकणा मत, तुमारे मनोरथ सदा सिद्ध होंगे, गंगने चौहाणोंको घेरलिया चौहाणोंकी फौज भगी, गढ़के अन्दरसें राजा नारायण सिंह देख रहाथा,. अनबी चमत्कार देखा, हैरतमें रहा, इतने मैं राजकुमार गंगसिंहने, आके मुजरा किया, और सब हाल कहा, अब राजा अपने सब पुत्रोंकों संग ले, विजय डंका बजाता, श्रीगुरू महाराजके पग मंडे, मोही नगरमें करवाये,. जब धर्मोपदेश सुणा तो, राजा रोम २ से फूलणे लगा, और जैनधर्मी महाजन हुआ, उन सब बेटोंके गोत्र हुए, बडे राजाके पुत्र मोही नगरसें, मोहीवाल कहलाये १ आलावत २ पालावत ३ दूधेडिया ४ गोय ५ थरावत ६ खुड़धा ७ टोडरमल ८ . भाटिया ९ बांभी १० गिड़िया १.१ गोढ वाडा १२ पटवा १३ वीरीवत १४. गांग १५ गोध १६ मूल गच्छ खरतर .. बोथरा, फोफलिया, दसाणी, वच्छावत, साह, मुकीम, जेणावत, डूंगराणी, साखा ९ श्रीजालोर महा गढके धणी देवडा वंशी चौहाण, महाराजा सामन्तसीजी उन्होंके, दो राणियां थी, जिनसें सगर १ वीरम दै २ और कान्हड ३ ऐसे तीन लड़के, और उमा नामकी एक लडकी हुई सामन्तसीजीके पाटपर, वीरमदेव बैठा, तब बडा पुत्र सगर आकर आबू पहाड़ देवलवाडेका राजा. हुआ, कारण सगरकी माता देवलवाड़ेके राजा भीमसिंहकी लड़की थी, वो दूसरी राणीकी अणवणतसें, सगरको लेकर, अपने बापके पास जारही, भीमके पुत्र नहीं था, इस वास्ते दोहीतेकों राज्य देगया, एक सो चालीस गांम सगरके तालूके थे, उसका तेज चारों दिसामें फैल गया, बडा बहादुर दानेश्वरी पणेंसें, नेकनामी पैदा की, उस वक्त चितोड़के राणा रतनसीपर, मालव देशका मालिक मुहम्मद बादशाह की, फौन चढ़ आई, राणा रतनसीनें, सगरकों बहादुर जाण, अपनी मदतको बुलाया, सगरके मुहम्मदसें युद्ध १ दोहा, गिरि अढार आबूधणी, गढ़ जालोर दुरंग, तिहासामन्तसी देवड़ो अमली माण अभंग १ २ उमा पिंगल राजाको व्याही थी
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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