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महाजनवंश मुक्तावली. हो जायगा, दोनों भाई श्रावक होगये, तब गुरूने धरणेन्द्र पद्मावती की आराधना करणेकों उपसर्ग हरस्तोत्र का स्मरण किया,पद्मावतीने नारसिंहको पकड़के, गुरूके, चरणोंमैं लगाया, गुरुने कहा, आज पीछे उपद्रव नहीं करना ये मेरे श्रावक हैं, नारसिंह वीरनें, कबूल करा गुरूनें दूगड सुगडकों कहा, नागदेव तुलारे वंशके, सहायक होयगें, ये चमत्कार देखसी सो दिया, वैरी शाल श्रावक हुआ, वह सीसोदिया गोत्र, प्रसिद्ध हुआ. इन दोनोंका वंश,. धन और जनसें, दादा गुरू देवकी भक्ति करणेसें, दिनपर दिन वड़की शाखा ज्यों, विस्तार पाया, मूल गच्छखरतर, अभीभी दूगडगोत्री, नागकुमारकी पंचमी, कई २ पूजते हैं, दादा गुरू देवकू सब दूगड मानते हैं, सेखानीकी
ओलाद सेखाणी वनते हैं, कोठारका काम करणेसें कोठारी भी दूगड बजते हैं, मूल गच्छ खरतर है, . ( मोहीवाल आलावत,पालावत,गांगा,दूधेड़िया शाखा१६)
मोही नगरमैं पमार राजा नारायण सिंह राज्य करता है, चौहाणोंने घेरादिया, नारायण गढका बन्दोबस्त कर, चौहाणोंसे युद्ध करने लगा, लेकिन चौहाणोंके पास बहुत धन और लाखोंकी फौज थी, नारायण चिन्तामैं चूर्ण हुआ, तब गंगपुत्रने पितासें अरज. करी, कि, हे पिताजी, श्री जिन दत्त सूरिःके पाटधारी, श्री जिन चन्द्र सूरिःका मैंने मेवाड़ देशमें, दर्शन किया, था, सो बडे चमत्कारी महापुरुष हैं, राजानें कहा, हे पुत्र उन्होंके पास पहुंचणा मुशकिल हैं, गंगने कहा, में हरसूरत, पहुंच जाऊंगा, दूसरे दिन, ब्राह्मण जोतषीका, स्वांग वणाकर, चौहाणोंकी फौजमें गया, और फौजी लोकों को, तिथिवार बताता २ फौजमें से निकल गया, अजमेरपरगणेमें गुरूका वन्दन करा, गुरूकों एकान्तमें, सब वार्ता कही, गुरूने कहा, तुह्मारा पिता सहकुटुम्ब हमारा श्रावक जैनी हो जाय तो, में सब बंदोबस्त कर देता हूं, गंगराज कुमारनें, ये बात कबूल करी, तब श्री गुरू महाराजनें जया विजया देवीका, आराधनारूप, पार्श्व मंत्र स्मरण किया, देवीने एक तुरंग. लाकर दिया, गुरूसें अदृश्यता पणेंमें, मालम करा, इस अश्वका चढणे वाला, अजयी हो जायगा, गुरूनें, गंगसे कहा, तुम. इस. घोडेपर सवार हो, देखते