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________________ महाजनवंश मुक्तावली ४३ उसकों गुलामनें, खुदातक पहुंचा दिया, ये बात सुण कर बादशाह खुश हो गया, और सातों गुने माफ कर दिये, दरबार मैं, कटारी, रखणेका हुक्म दिया, और फरमाया हे नेक नाम, जो कुछ नाम, और जो कुछ तेरेसें सखा· वत, करी जाय सो कर, इस तरहसें, कटारिया साख भई, बाद कई पीढ़ी इन्हों. की शन्तान, मांडवगढ़ मैं जावसी, किसी कशूर वश मुसल्मानोंने कटारियोंके . सब गोत्रवालोंको, मांडवगढ़ मैं कैद किया, २२ हजार रुपये दण्ड किया, तब खरतर भट्टारक गच्छके जती जगरूपजीनें, मुसल्मानोंको चमत्कार दिख-... लाकर, दण्ड नहीं लगणे दिया, एक रतनपुरा बलाई ( ढेढ ) लोकोंकों रुपये देता लेता वह बलाई कहलाये, इस तरहसें रतनपुरा मैं २४ जात चौहागोंकी महाजन भये, हाड़ा १ देवडा २ सोनगरा ३ मालडीचा ४ कुंदणेचा ५ बेडा ६ वालोत ७ चीवा, ८ कांच ९ खीची १० बिहल ११ सेंभटा १२ मेलबाल १३ वालीचा १४ माल्हण १५ पावेचा १६ कांवलेचा १७ रापड़िया १८ दुदणेच १९ नाहरा २० ईबरा २१ राकसिया २२ वाघेटा २३ सांचोरा २४ इन २४ जातमेंसे १० साखमहाजन प्रसिद्ध हुए रतनपुरोसे, रतनपुरा १ कटारिया २ कोटेवा ३ नराणगोता ४ सापद्राह ५ भलाणिया ६ साभरिया ७ रामसेन्या ८ बलाई ९ वोहरा १• इन सवोंका मूल गच्छ खरतर है। डागा मालू भामू पारख छोरिया। . रतनपुरके राजाके दिवान माल्हदेनी राठी तथा भामूजी खजानची जातके राठी तथा राठी वल्लासाह ये राजाकी फोनके मोदी थे. जिस समय राजा रतनसिंहकों जिन दत्तसूरिःजीने सांप काटे हुएको बचाया, तब चमत्कारी महापुरुष जाण माल्हदेजीके बडे पुत्रकों, अौंगकी बिमारी बहुत सख्त होगई थी, सो किसी विधसें इलाज नहीं हुआ, तब श्रीनिनदत्त सूरिनीसें कही, महाराज बोले रतनपुरके जात राठी महेश्वरी जैनधर्म अंगीकार करें तो, में तेरे पुत्रकों, बचानेका उद्योग करूं, सब राठी रतनपुराके, बासिन्दोंने ये बात कबूल की, कारण एक ते। माल्हदेनी दिवान सबके भरण पोषण करनेवाले, व दुसरे ऐसे चमत्कारोंकी.
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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