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________________ ४२ महाजनवंश मुक्तावली राजाकों काट खाया, राजा थोड़ी देरसें बेहोश होगया, आयुके प्रबल योगसें, श्रीजिन दत्त सूरिःआचार्य उस रस्तेसें बिहार करते चले आए. राज लक्षण अङ्गमैं देख, तत्काल ओघेसे पास करा, राजा निर्विष हो कर तत्काल बैठा हुआ, आगे गुरूकों देख, चरणोंमें गिर पड़ा, गुरूनें धर्म लाभ दिया, राजानें बड़ी धूमसें गुरूको अपने नगर मैं, पधराये, राजा, अपने प्राण देणेके बदलेमें, गुरूको राज्यभेट करणे लगा, तब गुरूनें कहा, हे राजेन्द्र हमने यावज्जीव धन कंचनका त्याग किया है, हम राज्यका क्या करें राजानें कहा आपका बदला कैसे उतरे, गुरूनें कहा, तुम जैनधर्म ग्रहण करके, हमारे श्रावक वणो, हमारा बदला उतर जायगा, तब गुरूको चौमासे. रखा, और धर्मका स्वरूप समझकर, बड़े हर्षसे सम्यक्त युक्त बारह व्रत ग्रहण करे, रतनसिंहका रतनपुरा गोत्र गुरूने थापन करा, इन्होंके वंश मैं झांझणसिंह बड़ा प्रतापी नर उत्पन्न हुआ, जिसकों दिल्लीके बादशाहनें अपना मन्त्री बनाया, झांझणासिंहनें प्रजाको बहुत सुख दिया, इसवास्ते सब हिन्द मैं उसके नेक नामीका सितारा चमकने लगा, एक समय बादशाहके हुक्मसें सजयका संघ निकाला, उहां पट्टणीसाह अबीर चन्दनें आरती उतारणेकी, बोली करी, झांझण सिंहने बाणवें लाख रुपये मालव देशके इनारे की आमदानी देकर प्रभूकी आरती उतारी, इन्होंके दूसरे भाई पेथडसाहनें, सत्रुजय गिरनार पर ध्वजा चढाई, रस्ते मैं धर्म पुन्य करते पीछा आके, सुलतानसें, सलाम करी, एक दिन किसी चुगलने, बादशाहसें चुगली कर दी, करोडों रुपये सरकारी खजानेके पुन्यार्थः . मैं लगाने साबित कर दिये, बादशाहने गुस्सेमैं आकर, झांझण, सिंहको पकड़नेको योद्धोकों भेने, तब झांझण कटारी लेकर खड़ा हो गया, योद्धे भगे, बादशाहसें अरज करी तब बादशाह आपः ही आकर बोले, अरे कटारिया, सच कह कि, सरकारी कोड़ों रुपये तेने खाये, झांझण बोला, एक पैसा भी बेहकका मुझे खाणा हराम है, हां अलबत, हजूरके मालसें, खुदाकी बंदगी और खैरायत, जरूर करी गई, अन्न जिसका पुन्य है, धर्म दलाली, मुझको मिलेगी, हजूरका नाम जुग जाहिर था,
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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