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________________ महाजनवंश मुक्तावली ४१ पोते, पृथ्वी राजके सेनापती हुए, इन्होंके मुसलमीनोंकी सेन्यासें, ६ वखत संग्राम हुआ ६ वखतही काबुलके बादशाहकों पकड़के चूड़ियां, लंहगा ओढणा, पहराके, बजार मैं घुमाया, ऐसे महायोद्धाकों देख, पृथ्वी राजजीनें, युद्ध मैं नाहटा इस नांमसें ही, पुकारणे लगे, लोक सब नाहटा २ कहणे लगे, इस तरह फतह पुरके नवाबनें, रायजादा पदवी एक पुत्रकों दी, वो रायजादा गोत्र हुआ, इस तरह, ३७ गोत्र बहुफणोंसें निकले १ बापना २ नाहटा ३ रायजादा ४ घुल घारेवाड़ ६ हुंडिया ७ जांगड़ा ८ सोमलिया ९ वाहंतिया १० वसाह ९९ मीठड़िया १२ वाघमार १३ आभू १४ धत्तरिया १५ मगदिया १६ पटवा १७ नानगाणी १८ क्रोटा १९ खोखा २० सोनी २१ मरोटिया २२ समूलिया २३ धांधल २४ दसोरा २५ भूआता २६ कलरोही २७ साहला २८ तोसालिया २९ मूंगरवाल ३० मकल बाल ३१ संभूआता ३२ कोटेचा ३३ नाहउसरा ३४ महाजनिया ३५ डूंगरेचा, ३६ कुत्रेरिया २७ कूचेरिया ' ये अनेक कारणोसें शाखा फटी है, मूल गच्छ सबका खरतर है, गुरूका वरदान था, तुम धन परवारसें बधोगे । ( रतन पुरा कटारिया जलवाणी ) विक्रम सम्बत् १०२१ सोनगरा चौहाण, राजपूत रतन सिंहनें रतनपुर नगर बसाया, जिसके पांचमी गद्दी सं. १९८१ मैं अक्षतीजकों, धन पाल राजा तखत बैठा, एक दिन शिकार करने राजा जंगल मैं गया, घोड़ा उलटा सिखलाया हुआ था, थांमणेंकों ज्यों ज्यों राजाने लगाम खेंची, त्यों त्यों घोड़ा चोफाले होता रहा, तब राजानें लगाम ढीली करी, तब घोडा ठहर गया शिकार हाथ नहीं लगणेंसें पीछा घिरा, रास्ते में एक तलाव नजर आया, उहां दरखतकी छांह मैं घोड़ेकों बांधके आप सो रहा, इतने मैं एक सर्प निकलके, १ पटवा बादरमल २ जोरावरमल ३ मगनीराम ४ वगैरह बड़े दानेश्वरी श्रीमन्त ५ भाई भये सत्रुंजयका संघ निकाला १८ लाख रुपया खरचवाकी सात क्षेत्रों में क्रोडों रुपये इन्होंने लगाये इन्होंकी सन्तान उदयपुर जेसलमेर कोटा रतलाम वगैरह शहरों में बसतें हैं हर्ष सूरिःका सूरत मैं महेंद्र सूरिः का मंडोवर मैं जिन्होंने पाट महोत्सव करा इन्होंकी उदारता लिखनेकी कलमे मैं ताकत नहीं इस जमाने मैं ऐसे दाता दुर्लभ होगये ऐसे २ काम करे ।
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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