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महाजनवंश मुक्तावली.
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किया एकदिन एक परदेशी श्रीमाल झंवरी राजाके पास हीरा वेचनेको या राजाको दिखलाया राजाने शहर के सब झंवरियोंकों दिखलाया झंवरियोंने उस हीरे की बड़ी तारीफ करी, जिसके पीछे राजानें अपणे झंवरी पासूजीको हीरा दिखलाया पासूनी बोले यद्यपि हीरा बडा कीमती है परन्तु इसमें एक ऐव है, तब राजाने पूछा वह कौनसी पासूजी बोले, जिसके घर मैं यह हीरा रहता है उसकी स्त्री मर जाती है, तब राजानें श्रीमाल झंवरीकों बुला कर पूछा, हमारे झंवरी पासूजी इस हीरे मैं ऐसी एब बतलाते हैं, उसने अपना कान पकड़ा, और कहने लगा मैंनें हजारों नांमी झंवरी देखे हैं, परन्तु पासूनीकी बढ़ाई करणेकी जुबानको हिम्मत नहीं है, सच्च है, मैंने दो व्याह किए दोनों मरगई, तब इस हीरेको एब दार समझ बेचने आया हूं, पीछे तीसरा व्याह करूंगा, तत्र राजानें, सत्य पारख जांणके पारख पदवी, पासूजीकों, प्रदान करी, पासूजीकों लाख रुपया सालियाना देणा, उस दिन राजानें, कबूल करा, पासूजी उस हीरे की लक्ष रुपया कीमत देकर श्रीऋषभ देव भगवान के मस्तक पर लगानेको तिलक वणाकर चढ़ा दिया, इनकी शन्तानवाले पारख कह लाए, पांचमा पुत्र सेनहत्थ लाडका नाम ( गद्दासा ) था, उसकी शन्तान, गद्दहिया कहलाई, खरहत्थजीके चौथे बेटे आसपालजी, इन्होंके आसाणी तथा ओस्तवाल दो लड़कोंसें गोत्र हुए । (भैंसा शाहने गुजरातियोंकी लङ्ग खुलाई )
भैंसा साहके पास, खरहस्थ राजानें, जो यवनोंसें, धन बे गिणतीका छीना था, वो ज्यादह, इन्होंकेही पास रहा, इन्होंकी माता लक्ष्मीबाई, सत्रुजयकी यात्राकों बड़े महोत्सवसें चली, जगह २ रथ महोत्सव, संघकों भोजन, धर्मशाला, जीर्णोद्धार, याचकोंकों दान देते चली, पाटणनग्र पोहचते धन पास मैं थोड़ा रहा, तब अपने गुमास्तोंको भेज वहांके बड़े व्यापारी नामी चारोंकों बुलाया, उसमें गर्दभसाह मुख्य था, तब उनोंसे लक्ष्मीबाईने कहा, मैं क्रो सोनइये चाहिए हैं, सो हमारी हुण्डी मांडवगढकी लेकर के दो, तत्र व्यापारी बोले, तुम कौन हो, क्या जाति, किस जगह रहते हो, हम पिछानते नहीं, तब लक्ष्मीबाईने कहा, मेरा पुत्र कहीं छिपा नहीं है, मैसेंकी माता
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