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________________ महाजनवंश मुक्तावली. हं , ऐसा सुणकर गद्धासाह हंसकर बोला, भैंसा तो हमारे पखाल पाणीकी लाता है, ऐसी हसीकर चले गये, परन्तु देणा कबूल नहीं करा, तब मातानें सवार भैंसेसाहके पास भेजे, और सब समाचार लिख भेजे, तब भैंसासाह अगणित धन लेकर, पाटण पहुंचा, और गुमास्तोंको भेज, गुजरात देसमैं, जगह २ तेल खरीद करवा लिया, और पाटणमैं, उन व्यापारियोंसें, तेल मुद्दतपर, लेणेका वादा किया, लक्ष मोहरे देदी, अब पाटणके व्यापारीने गामोंमैं गुमास्ते भेमे, तेल खरीदणे, लेकिन कहीं तेल मिला नहीं, आखिर को तेल देणेका वादा, आ पहुँचा, अब पाटणके सब व्यापारी, इकठे होकर लक्ष्मीबाईके, चरणोंमें आ गिरे, और कहणे लगे, हे माता, हमारी लज्जा रक्खो, तब भैंसा साह बोला, राजसभामैं चलकर तुम सब लोग, लंग खोल दो, और आइन्दे कभी दुलंगी धोती नहीं बांधो तो, तेल लेणेकी माफी दूंगा, उन्होंने वैसाही करा, तबसें गुजरातवाले दो लंगा नहीं रखते हैं बाकी गांमवालोंसें, तैल लेलेकर जमीनपर गिराणा शुरू कराया, तेलकी नदी ज्यो प्रवाह चलाया, आखिर गुजरातके व्यापारियोंने हाथ जोड़, माफी मांगी, तब निशाणीके लिए सबोंकी लङ्ग खुलादी, और भैंसेको पाडा कहणा कबूल कराया भैंसेसाहके कहणेसे अपणे नामका सिक्कासे लहत्थ ( गद्दासाह ) ने छमासे सोनेका गदियाणा बनाकर दीन हीन कंगालोंको बांटा, तब पाटणके राजाने भैंसासाहकों बुलाकर मान प्रतिष्ठा बढाकर रूपारेल विरुद दिया, याने रूपारेल शकुनचिड़ी प्रशन्न होकर, जब शकुन देती है तो, नवनिद्ध सिद्ध कर देती है, सम्बत् १६२७ मैं सजय पर श्रीजिन चन्द्रसूरिःखरतराचार्यके उपदेशसे, १८ गोत्र और भाई होकर, गछ खरतरसे प्रतिबोध पाये, जिनखरहत्थ राठोड़की साखा, इतनी फैली, सगे भाइयोंका कुछ क्षात तो पहिले लिखा है, बाकी कानफरेंसकी रिपोर्टमैं और भी गोत्र गोलछा पारखोंके सगे भाई लिखे हैं साबसुखा १ गोलछा २ पारख ३ पारखोंसे आसाणी ४ पैतीसा ५ चोरवेडिया ६ वुच्चा ७ चम्म ८ नावरिया ९ गद्दाहया १० फकिरिया ११ कुंभटिया १२ सियाल १३ सचोपा १४ साहिल १५ घंटेलिया १६ काकड़ा १७ सीघड़ १८ संखवालेचा १९ कुरकचिपा २०
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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