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________________ २४ महाजनवंश मुक्तावली. गुजरात देशमैं देव पुजारीकों वर्तमानमैं गोठी कहा करते हैं, गोडीजी समाधि मरणकर मरयक्ष हुआ, अवधि ज्ञानसे पूर्वजन्म देख उस पार्श्व प्रतिमाकी महिमा विस्तृत करके पृथ्वीतलमैं रखकर मनुष्योंको स्वप्न देकर, मूर्तिको प्रकटाने लगा, बारह वर्षोंसें उसके नामसें, गवड़ी पार्श्वनाथ, नाम विस्तार पाया, आखरी विठूरे ग्राम प्रगटे, तद्पीछे दर्शन अद्यावधि मूर्तिने नहिं दिया, गोड़ीके शन्तान, गोठीनामसें प्रसिद्ध हुए, मूल गच्छ खरतर, (अथ खीमसरा गोत्रकी उत्पत्ति) मरुधर देश मैं बालेचा चौहाण राजपूत खीमजी नामका उसमें प्रथम ग्रामका नाम परा वर्तन कर, खीमसर नाम प्रसिद्ध करा, एक दिवस इन्होंके शत्रु राजपूत भाटी इन्होंकी गऊ ऊँठ प्रमुख द्रव्य लेकर पलायन हुए ( भगे ) खीमनी राज पूतोंके संग उस धनको लाने निकले, शत्रु प्रबल दलने इन्होंके, बलको, छिन्न भिन्न कर डाला, चिन्ता ग्रस्त हो, पीछे पुनः बल लेने चले, इतने मैं खरतर गच्छाचार्य जिनेश्वर सूरिःके शिष्य साधुओं सहित सन्मुख मिले, प्रतापी गुरुत्व पन देख बिनती करी, हे पूज्य आपपर दुःख भञ्जन हो, पर द्रव्य हरण कर ले जा रहे हैं, कुछ प्रतीकार करो, गुरूने कहा, यदि तुम निरपराधी जीवोंके हननेका, मद्य, मांस, और रात्रि भोजनका त्याग करो तो, गुरुदत्त प्रतीकार है, स्वार्थ सिध्यर्थ खीमनी सहित सर्व राजपूतोंने, ४ नियम धारण करे, गुरूने शत्रुवशी करन, अमोघ विधि नमस्कार मंत्रके, ध्यानकी कथना करी खीमजी स्मरन करने लगा उस मंत्रके अमोघ प्रभावसें शत्रुओंके मनोगत पर्यायपलटे सन्मुख आकर सर्व द्रव्य देकर क्षमा याची, ये स्वरूप देख खीमजी आदि राजपूत साश्चर्य हो, जैनधर्म धारण करा, इन्होंके तीन पुख्तानोंका ब्याह सम्बन्ध राजपूतों मैं होता रहा, सगे राजपूत उपहास्य, व्याह आदिमैं करते रहै, शस्त्र क्यों धारण करा है, तकड़ी ( तराजू ) लो, ये प्रत्युत्तर यथार्थ देते, अपराधियोंको दण्ड देते, इन्होंके मन मैं व्याहादिकों मैं, मद्यपान, मांस भक्षणादि देखकर, भीमजी, ऐसी चिन्ता निवृत्त्यर्थ उपाय विचारते थे, इतने मैं जंगम सुर तरु दादा श्रीजिन दत्तसूरिः खीम
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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