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________________ महाजनवंश मुक्तावली. ये प्रतिमा यहांसे, स्थल देशमैं नहीं गमन करेगी, कारण इस देशके वास्तव्य, ग्रामीण, निर्विवेका मरु स्थल्या, अर्थात् निर्विवेकी ( विचार शून्य ) मनुष्य ग्रामोंके वास्तव्य, प्राय विद्याहीनपनेमैं हैं, बूझ्झ बुजाकडकी आज्ञा माननेवाले हैं, जलरहित, कंटकदेश है, इस लिए तूं , यहां पर पार्श्व प्रभूका, भुवन करा, जहां अक्षतके. स्वस्तिक पर, नगद मुद्रा तूं देखे, उस स्थल मैं अगणित द्रव्य निकलेगा, और जहां हरा नारेल तूं देखे जल भरा, उहां मीठे जलका कूप निकलेगा, जहां गीला गोमय (गोवर) पड़ा तूं देखे, उहां खारे जलका कूप निकलेगा. अक्षतके स्वस्तिकपर जहां पुंगीफल (सुपारी) देखे उहां पाषाण (पत्थर ) नाना प्रकारके जैसा चाहियेगा वैसा निकलेगा, शिला बटा, शिल्पशास्त्रका, पूर्णपारंगामी सिरोही नगरमैं रहता है, उसके गलत कुष्ठ रोग है, वह मिटा दूंगा, और उसको मन्दिर बनानेकों कहदूंगा, उस्को आमंत्रण करना, इत्यादि कहकर अदृश्य हुआ, सार्थ वाह हर्षित हुआ, उक्त द्रव्यबलसें प्रथम दो कूप कराये तत्पश्चात् सिलावटेको बुलाया, पार्श्व भुवन कई वर्षों से चार मंडप, खंभ २ पर, नाटक करती, वाजित्र बजाती, पुतलियां, एवं प्रशंसनीय कोरणीयुक्त, शिखरबद्ध, भुवन निष्पादन करा, कुंकुम पत्रिका भेज २ श्रीसंघको एकत्रित करा, सवालक्ष देशमैं विचरते हुए, खरतर गण नायक, श्रीजिनदत्त सूरिःजीको, प्रतिष्ठाके लिए बिनती करी, गुरू ऐसा शुभ लग्नमैं, चैत्यप्रतिष्ठा कर, पार्थ प्रभूषं विराजमान कर, वासचूर्ण मंत्राभिषेक करा मंगल जय शब्द हुआ, उस समय आकाशमैं देव दुइंभिका निनाद, करके साढी बारह कोटि सोनइये देवतोंने बर्षा करी और कहा, ये सर्ववर्षित द्रव्य, संघपति, मेघाके लिये दिया गया है, ऐसा चमत्कार, श्रीजिनदत्त सूरीःजीका, प्रत्यक्ष देख, मेघा सार्थ वाह सम्यक्त युक्त बारह ब्रत, दादासाहिबके, समक्ष धारण कर, खरतर श्रावक हुआ, मेघा पुत्र गौडी हुआ, इसने भी सम्यक्त युक्त श्रावक व्रत धारण करा, गुजरात, गोढ़वाड़के श्रावकोंने पार्श्व प्रतिमा पूजक समझ गाठी' कहना शुरू करा, १ संस्कृतमें, महाधनवंत, नगरमें मुख्य, राजा प्रजाका हितचिंतक, बुद्धिवानको गोष्टी कहते हैं,
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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