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महाजनवंश मुक्तावली.
या खुदाका भेजा प्रेसता है वह दर्शाव देकर तुम्हें कह गया है, तब वह यवननें रात्रिकों उसी समय उठके उक्त स्थानको खोदा, तब वह पार्श्व प्रभूकी मूर्ति प्रगट हुई, तब उस यवनको पूर्ण विश्वास हो गया के जिसने मुझकों दर्शन देकर जो वार्ता कही थी वह वा वैसी ही होगी, तब बीबी और यवन अपने बालबच्चों युक्त पार्श्व प्रतिमा सन्मुख ताजीम ( विनय) से हाथ जोड़ कहने लगा कि हे देव तूं क्रोधितमत होना हम तेरी बंदगी करने तेरे वंदे हैं, जो आज्ञा तेरी होगी वही करेंगे, गृहके द्वारा ऊपर जाके उस सार्थ वाहका मार्ग गवेषणा करनेको स्थित हुआ, इधर इस ही प्रकार उस यक्षनें मेघा सार्थ वाहकों स्वप्न में दर्शन देकर कहा अण हिलपत्तन मैं एक यवन तुझकों पार्श्वप्रभूकी प्रतिमा देगा, और पांच सय मुद्रा तुझसे याचेगा, तूं शीघ्र उसको पांच सय मुद्रा देकर पार्श्वप्रभूकी प्रतिमा ले लेना, उसकी पूजा अष्ट विधीसें तूं निरन्तर प्रभात करना मध्यान्ह पुष्पादिसें अंग रचना. संध्याको आरती धूपोत् क्षेपन की करना, तुझें इहभव, परभव, उभय लोकमैं लाभप्रद होगा, ऐसा कह अन्तर ध्यान हुआ, प्रभात समय उठ नित्य करतव्य स्नान तिलकादि कर प्रयाण करा सूर्योदय समय अणहिल पत्तन प्राप्त हुआ, देवकथित चिन्हों द्वारा पहिचान कर यवनने पार्श्व प्रतिमा अर्पण करी पांच सयमुद्रा याचनेसें सार्थ वाहने यवनको दिये बडे विनयसें पूजा द्रव्यभाव करता स्वव्यापारमैं महान् लाभ पार्श्वयक्षकी सहायतासे उपार्जन करता क्रमसें मेघा सार्थ वाह पारकर जो देश गोढवाड और पाली मारवाड के शमीपस्थ देश उहां जाकर प्राप्त हुआ, पार्थ जिन प्रतिमाका चमत्कार, मनो वाञ्छित पूरक प्रभावसें, यात्राके अर्थ धर्मी जन आने लगे, ज्ञाता अङ्ग, राय प्रश्नी, जीवाभिगम सूत्रोक्त विधीसें सतरह भेदादिक द्रव्य भाव युक्त पूजा करने लगे, क्रमसें सार्थ बाहने स्थल भूमिमैं प्रयाण किया जब १२ कोस आया अकस्मात् जिन प्रतिमाका वाहन स्थमभित होगया पदमात्र चले नहीं, ये स्वरूप देख सार्थ वाह चिन्तातुरपने निद्रा प्राप्त हुआ तत्काल यक्ष राज आकर स्वप्नमैं कहता है कि हे सार्थेश. चिन्ता मत कर,