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________________ महाजनवंश मुक्तावली. आत्मसाक्षी ग्रहण करा, परम जिनधर्मी हुआ, तदनन्तर जूनागढ़के नवलखे धुंधल साहकी पूत्री चन्द्र कुंवरसें ब्याह किया, उसका नाम सासरे मैं सजनादे प्रसिद्ध हुआ, उसमें ४ पुत्र उत्पन्न हुए, सारंग १ सगता २ सार्दूल ३ शिवराज ४, इन्होंका परिवार क्रमसें वृद्धि पाया कारणसें शाखा भिन्न -२ हुई इति * मूलगच्छ खरतर. (गोठी गोत्र उत्पत्ति) __ मेघा नामका सार्थ वाह जिसके पांच सय वृषभों ऊपर नाना वस्तु किरियाणेका भार वहता है, कई मनुष्य सेवक है, स्थान २ आडत है, एक समय इस प्रकार स्वरूप बणा, विक्रम शताब्दी ११५३ मैं गुजरात देश अणहिलपुर पत्तनमैं एक महा द्रव्य पात्र राज्य माननीय यवन है उसके गृह भूमिके मध्य पार्श्व जिनेश्वरकी प्रतिमा है, उस पार्श्वप्रभूका अधिष्टायक, पार्श्व यक्षनें उस यवनको स्वप्न में कहा तेरे गृह भूमिके मध्य मैं, पार्श्व जिनेन्द्रकी प्रतिमा है, उसको तूं भूमिमध्यसे निकाल कर, मेघा नाम सार्थवाहको देदे, और उस सार्थ वाहसें पांच सय मुद्रा तूनें ले लेना, वह कल प्रभात समय तेरे गृहद्वार सन्मुख वस्तु किरियाणेकी बालध लेकर निकलेगा, उसके मस्तक पर कुंकुम तिलक उपर अक्षत लगे हुए होंगे, इस चिन्हसे पहिचान लेना, यक्षराज हरा अश्वहरा पलाण ( काठी ) उसपर हरे वस्त्र हरित रंग आप,धारण करा हुआ, यवनको दर्शन दिया और कहा, यदि तूं मेरा कथन नहीं मंतव्य करेंगा तो, तेरे पुत्र कलत्र परिवारको, तथा नगद द्रव्यकों, हस्ती अश्वादि सर्व सम्पत्तिको, कुशल कल्याण नहीं होगा, ऐसा स्वप्नमैं स्वरूप देख, यवननिद्रासें जाग्रत हो, अपनी स्त्री बीबीसें स्वप्नका स्वरूप सर्व निवेदन करा, बीबी ऐसा वृत्तान्त श्रवण कर भयभीति हो अपने पतिसे कहने लगी हे प्राणनाथ शीघ्रतया उस वुत्तको भूमिमैसे निकालो नहीं तो कोई अवश्य हानी होगी, ये कोई जिन्दोंका बादशाह है * प्रथम छपी मुक्तावली में छापा गयां इतिहास वह एक जीर्णपत्र पर लिखा दूर करके यह इतिहास जोधपुरसें मेडतावाले ऋषभदासजी धाड़ेवालने ३ प्रमाण दे लिख भेजा इस लिए यह लिखा है.
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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