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________________ महाजनवंश मुक्तावली. श्रीजिनवल्लभसूरिजीके शमीप आकर, बिनती करी, है गुरू मेरी विजय होय ऐसा समय कथन करो, तब गुरूनें, मनमैं श्रवण करके कहा कि मध्यान्ह समय, अभिजित् नक्षत्र में, विजय मुहूर्त आताहै उस मैं जो कार्य किया जावै, वह सर्व सफल होता है ऐसा चामुण्डादेवी कहती है, ढेढूनो तथास्तु कह गुरू पद वन्दन कर सैन्याबल संग लेकर उक्त मुहूर्तमैं प्रयाण करा, उनखीचीके भेजे राजपूतों मैं सबल संग्राम हुआ, ढेढूजीके सौ सुभट मृत्यु प्राप्त हुए डेढसो शस्त्र आघातसें, जर्जरित हुए, खीचियोंके दोयसै सुभट यमलोक प्राप्त हुए, अढाइसो शस्त्रोद्वारा जर जरित हुए, रण भूमिमैं, ढेढूजीने जय पाई, वदन कँवर कन्या और सर्व द्रव्यहस्ती अश्व आदि लेकर निज नगरमैं आए, प्रथम गुरू महाराजके शमीप जाकर, वन्दन, नमन, कर, स्तुति करी, परमपूज्य आपके सत्य वचनानुसार मैंने जय प्राप्त करी, मुझे जो आप आज्ञा करें वह प्रमाण करूं, गुरूने कहा, हे राजेन्द्र यह बदन कंवर राणीका जो पुत्र होय वह मेरा श्रावक होय, राजाने यह गुरूके वचनकों प्रमाण करा, कालान्तरसें सम्बत् ११५१ वर्षे शालिवाहन शाके १०१६ प्रवर्तमाने मासोत्तम माघ मासे शुक्लपक्षे चतुर्दश्यां तिथौ, बुद्धवासरे, सूर्योदयात् गत घड़ी १५ पल २५ पूर्वाभाद्रपदनक्षत्रे, सुसमये, राणी वदन कंवर पुत्रमजीजनत, दशोठन, करे पीछे, सोहड़ नाम स्थापना करी, तत् समये, श्री जिनवल्लभ सूरिः गुरू महाराजके चरणों उपर धरा, गुरूने वास चूर्ण क्षेपन करा, इसकी माता धाडेसे लाई गई, इसलिए गुरूने इसका गोत्र धाडे. वाल स्थापन करा, श्री जिनवल्लभ सूरिःनी विहार कर देवलोक हुये, तदपीछे वल्लभसूरिः के पद ऊपर सम्बत् ११६९ श्री जिनदत्तसूरिः जी हुएउन्होंने सोहड़को, विशेष प्रतिबोध दे श्रावक व्रत धारण कराया, और उपदेश दिया, पतीके मृत्युअनन्तर, मोहा ग्रस्तपने, जो स्त्री अग्नि में जलकर मरे, उस्को लौकिक शती कहते हैं, उसकी मानता, पितर. कुल देवी, इत्यादिक सेवा, भक्ति न करणा, देव श्री बीतराग, अष्टादश दोषण वर्जित, मुक्तिप्रद की भक्ति, गुरू खरतर गच्छके यति साधू , केवली कथित धर्म अर्थ है, अन्य सब अनर्थ रूप है, ऐसाही सम्यक्त्व युक्त ब्रत जानकर, साहड़ने
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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