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________________ महाजनवंश मुक्तावली. इन्होंमैं है, सियाल सांड दूसरे हैं, उस समय मिथ्यात्व त्याग, हंसकायस्थ मंत्री गणधरने भी, श्रावक व्रत सहकुटुम्ब धारण करा, उनसें गणधर चोपड़ा - गोत्र स्थापित हुआ, गुणधरमैंसें, गांधीपनेके व्यापार करनेसे गांधी गोत्र स्थापित हुआ, नानूजीके पांच पुख्तान पीछे दीपचन्दजी भये, उन्होंका ब्याह लग्नादि, ओसवालोंमैं, शामिल श्रीजिन कुशल सूरि : गुरूनें सदाधर्म स्थिर रहैगा, इस न्यायसे, ओसवालोंकी पंक्तिमैं संमिश्रित करादिया, दीपचन्दजी पीछे परिवारकी बहुत वृद्धि हुई, ११ मी पुख्तान सोनपालजी उन्होंके पौत्र ठाकुरसीजी महाबुद्धि शाली, चातुर, सूर, तव रावचूंडेजी राठोड़ने, उन्होंको कोठारका काम सुपुर्द किया, वह कोठारी कहलाये, राव श्री वीकेजीने, बीकानेर मैं, हाकिम पद दिया, वह हाकिम कोठारी कहलाये, इन्होंकी शाखा १२ का पता लगा है कूकड़ - १ कोठारी २ हाकम ३ चीपड़ ४ चोपड़ा ५ सांड ६ बूबकिया ७ धूपिया ८ जोगिया ९ बड़ेर १० गणधर चोपड़ा ११ गांधी १२ गणधरोंका निवास मारवाड़ पंच पदरे मैं, अन्य २ स्थान भी है, मूल गच्छ खरतर, कोठारी संज्ञा अन्य गोत्रमैं भी है, दूगड़ कोठारी, रणधीरोत कोठारी आदि उनसें भाईपां नहीं है, ( धाड़ेवा, पटवा, टाटिया, कोठारी, ) गुजरात देसमै विभंम पाटणनगर मैं ढेढूजी राजा राज्य करता था, डाभी वंशराजपूत चार पांच सहस्र अश्वपति, लेकिन पर द्रव्य घाड़ा कर लूटै, एकदा समय खरतर गछ नायक श्रीजिनवल्लभ सूरीश्वरजी उहां पधारे, श्रावक जननें महामहोत्सव पूर्वक नगर मैं पधराये, तब राजा ढेढूजीने, गुरूके ज्ञान क्रिया की महिमा श्रवण कर, दर्शनार्थ आया, गुरूनें धर्मोपदेश दिया, राजा उपदेश श्रवण कर, हर्षित हुआ, निरन्तर गुरुकी सेवा मैं आने लगा, यों आते जाते अत्यन्त धर्म की रुचि वृद्धि पाई, इस अवसर मैं ग्राम सामन्तका स्वामी ऊहड़ खीची राजपूत, उसने अपनी पुत्री व्याहनेकों, सीसोदिया राणा रणधीरकों, बहुत राजपूतोंके संग डोला भेजा, नवघोडा, एक हस्ती, पञ्चविंशतिसहस्र नगद मुद्रा, स्वर्ण, रूप्य, मई आभूषण रत्नादिक युक्त, इत्यादि द्रव्यसामग्रीका स्वरूप, ढेढूजी राजाने, श्रवण कर, गुरू भट्टारक, १९
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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