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१८. महाजनवंश मुक्तावली. क्या प्रतिज्ञा करी थी, राजाने राणीसे पूंछा, राणी बोली, राजाके पुत्रकों श्रीजिन दत्तसूरिः, घर २ भीक्षा मंगायगें, सर्वथा पुत्र नहीं देने दूंगी, पुत्र दिया तो, प्राणत्याग दूंगी, तब राजाने लाचार हो, गुरूसें कहा, हम सब, आपहीके हैं, आपका गुण हमारी शन्तान कभी नहीं भूलेगी, गुरू उहाँसे बिहार कर गये, कर्मके वसरातकों भोजन करते समय, बडे पुत्रके, सांपकी गरल खाने मैं, आगई, कूकड देवके, प्रभात समें वैद्योंनें, चिकित्सा बहुत करी लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ, तीसरे दिन सर्व शरीर फूट गया, मंत्र, यंत्र सब कर चुके, महा दुरगन्ध, महा विदरूप, वदनमैसें, पूय झरणे लगा, मृत्युके मुख पड़ा, राणी, हाय २ कर रोने लगी, शहर मैं, हाहाकार मच गया, तब गुणधरजी कायस्थ, हंसजाति जो उस समय दीवान थे, उन्होंने राजासें अरज करी, हे महाराज, आपने, महापुरुषोंसें, कपट करा, उसका फल है, आप यदि अपना भला चाहो तो, उन्हीं परम पुरुषके, चरण पकड़ो, राजा उसी समय घोड़े पर सवार हो, सोझत इलाकेसें गुरूकों, पीछा लाया, गुरू देख कर बोले, जो तुम सहकुटुम्ब, जैन धर्म धारकर, खरतर गच्छ के श्रावक बनो तो, आपका पुत्र अच्छा हो सक्ता है, राजाने कहा, कि मेरी आल औलाद, लायक बन्द होगी, सो खरतर गुरूका, उपकार, कदापि भूलेगी नहीं, न पराङ्मुख होंगे, गुरूनें कहा, ताजा मक्खन लावो, गणधरजी मुख्य मंत्री, तत्काल कूकड़ी नाम गऊका, नवनीत [ मक्खन ] ले आए, गुरूने योग साधन विद्यासे, अलक्ष दृष्टि पाससें, आत्मबल विद्युत् प्रक्षेपन नवनीत ऊपर करके, आज्ञा करी, चोपड़ो, गणधरजी मंत्रीने, चोपड़ा, तत्काल पूय श्राव वन्द हुआ, तीन दिवसमैं, गंध निवृत्ति हो, स्वर्णवर्ण निन रूप हुआ, ये प्रत्यक्ष उपकार, चमत्कार देखकर, गुरूकों, धर्म तत्व पूछा, गुरूनें, न्याय युक्तिद्वारा ३ तत्व देव १ गुरू २ धर्म ३ का स्वरूप जिनोक्त कथन करा, नाहडजी पड़िहार, राजाने, सह कुटुम्ब, जिनधर्म धारण करा, गुरूनें उस पुत्रका, चोपड़ा, तथा कूकड़ गोत्र, स्थापन करा, तथा चीपड़ पुत्रका चीपड़ गोत्र, हुआ, सांडे पुत्रसें, सांड गोत्र हुआ, सांड गोत्र दो है कूकड़ सांड,