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________________ महाजनवंश मुक्तावली. १७ रहित होगा, वर दिया, उसका अपभ्रंश लोक वरढिया कहने लगे वो उसकी बहिन भाईके हत्या के निवृत्त्यर्थ मोहसें शुभध्यानसें मर व्यंतर निकाय में देवी भई, भूवाल उसका नाम है, इसकों कुल देवी कर पूजणे लगे, नेमिचन्द्र सूरिः के तीसरे पाटधारी, जिनेश्वर सूरिःकों खरतर बिरुद् मिला, मूल, गच्छ इन्होंका खरतर है, 1 कूकड़ चोपड़ा गणधर चोपड़ा चीपड़गांधी वडेर सांड खरतर गच्छाधिपती, जैनाचार्य, अभयदेव सूरिःजीके शिष्य, वाचनाचार्यपढ़स्थित, श्रीजिनवल्लभ सूरिः, ११५६ वर्ष विक्रमके, विचरते २ मंदोदर नगर मैं पधारे, उहाँका राजा, नाहडराव पड़िहार साख इन्दा गुरूकी बहुत भक्ति करी, और विनती करी, है परमगुरु मेरे पुत्रके पुत्र नहीं, गुरूनें कहा, पुत्र होनेसें संसार बढ़ेगा, साधू संसार बढाणे विना जैनसंघ के काम विना, निमित्त भाखे नहीं, इसलिए तूं, इतना करार करे की पहले पुत्रकूं आपका शिष्य दीक्षित करदूंगा तो, बताकर पुत्ररूप संपदा कर दूं, राजानें बड़े हर्षसें, ये बात मंतव्य करी, गुरूने कहा, तुम और तुह्मारी स्त्री, ये मेरा वास चूर्ण, सिरपर लो, दोनोंनें लिया, गुरूनें कहा बचन मत पलटना, चार पुत्र होगा, गुरू विहार कर गये, क्रमसें चार पुत्र हुए इधर सम्बत् १९६९ मैं श्रीअभय देवसूरिः, वादि देवसूरिः अपने धर्म मित्रकों, कह गये, मेरे पट्ट पर, बल्लभकों, स्थापन करणा, देवसूरिःनें कहा, वल्लभकी आयू अत्र थोड़ी है, लेकिन इसमें वाचनाचार्य पद मैं रहते ५२ गोत्रराजपूत माहेश्वरी ब्राह्मनोंकों, जिन धर्मी महाजन बनाये हैं, इस लिए, महा प्रभावीक है, मैं आचार्य पद मैं स्थापन कर दूंगा, श्रीजिन वल्लभसूरिः कों स्थापन किया, ६ महीने आचार्य पद पालके, देवभद्र सूरिःकों सोम चंदको पट्टधारी बनाने का वचन कथन कर स्वर्गवास हुए, १०८ चिन्ह करके सुशोभित, शरीरधारी, श्रीजिनदत्त सूरि नाम देवभद्र सूरिनें सूरि मंत्र दिया, तीन क्रोड़ ह्रीं कारके जपकी सिद्धि कर, श्रीजिन दत्त सूरिः विचरते २ मन्दोवर नगर पधारे राजानें बहुत ही, उच्छव करा भक्ती दरसाई, गुरूने कहा, हे राजेन्द्र, गुरू महाराजका वचन याद हैं, आपने ३-४
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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