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महाजनवंश मुक्तावली जो तुम जैनधर्म धारण करो तो, सर्व कामना सफल होयगी, धन पाकर सात क्षेत्रोंकी भक्ति करणा, सुपात्र तथा दीन हीनकों दान देणा व सदाके लिए, तुम्हारी सन्तान मेरे शन्तानोंके धर्म उपाशक, वेमुख न होगी तो, जा तेरे मकानके पिछाडी अगणित द्रव्य जमीनमैं, गडा है, उसकों निकालते, जो तुझें मत निकाल ऐसा शब्द कहै, उसकों कहणा,. मैं, नेमिचन्द्र सूरिःका, श्रावक हूं, इस धनका आधा भाग, सुकृतार्थ लगावेगा, तब तेरे तीन पुत्र होगा इतना सुन, लक्ष्मणपाल अपनी भार्या समेत सम्यक्त्व युक्त बारह व्रत गृहण करा उसी तरह, वो निधान निकला, शत्रुञ्जयका संघ निकाला, अगणित द्रव्य धर्म मैं लगाते, तीन पुत्र उत्पन्न हुए, १ यशोधर २ नारायण ३ और महीचंद्र, गुरू श्रीनेमिचंद्रसूरिने, आशीर्वाद दियाथा, इन पुत्रोंसें तुम्हारा कुल बढेगा, योवन अवस्थामें महाजनवंशमैं इन्होंका विवाह किया, उसमैंसे पहले नारायणकी स्त्रीके गर्भ रहा,. पहिरमैं जाके जोडा जन्मा जिसमें लडका तो सांपकी आकृतीवाला और दूसरी लड़की, इन दोनोंको लेकर सुसरार आई, अब वो सांपकी आकृतिवाला लडका शीतकालमें चूल्हेके पास सोताथा, लोटपोट करता चूल्हेके पास चला गया, भावीके वस उसकी वहननें पाणी गरम करणे पिछली रातर्फे अंधेरेमें चूल्हा सिलगा दिया उससे वो नाग आकृति बालक जलकर मरा, शुभ भावसे व्यंतर देवता भया अब वो नागदेवके रूपसें आकर अपनी बहनको तकलीफ देणे लगा, तब लक्ष्मणपालने यंत्र, मंत्र, बलिदान, वगैरह कराया, तब प्रत्यक्ष होकर बोला, जबतक मैं व्यंतर योनिमें रहूंगा तबतक लक्ष्मणपालकी संतानकी लडकियां, कभी सुखी नहीं रहेगी, कुछ न कुछ आपदा होगी, ये बात सुण, बहुत लोगोंने विचारा, सच्च है या झूठ, इतनेमें एकः कमरके पीडावालेने आकर कहा, जो तूं सच्चा देव है तो, मेरी कम्मर अच्छी करदे, तब देव बोला, लक्ष्मणपालकै घरकी दिवालसें तेरे दरदकी जगह स्पर्शकर, अभी पीडा चली जायगी, उसने दिवालसें स्पर्श किया, कम्मर अच्छी हो गई, तब उस देवनें लक्ष्मणपालको वर दिया, जो चिणक पीडावाला तुमारे घरका स्पर्श करेगा सो तीन दिनसें निश्चय पीडा