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________________ महाजनवंश मुक्तावली. २५ सर पधारे, भीमजी वन्दन करनार्थ, सपरिवार युक्त गये, गुरूने धर्मोपदेश दिया, अवसर पाकर निज दुःख कथन करा, दादा साहिबनें सभा समक्ष निरवद्य भाषण करा, साधर्मी सगपण समो, सगपन अवरन कोय, भक्ति करो साधर्मकी, समकित निरमल होय ? तब ओसवाल श्रावक इन्होंके पुत्र परिवारकों अपनी जाति मैं मिलाये, इन्होंने व्यापार प्रारम्भ किया, खीमसर मैं होनेसें खीमसरा जातिका, नाम प्रसिद्ध हुआ, भीमजीदादा गुरुदेवके शमीप जाकर, अपने सपरिवार ( कुटुम्ब ) सहित व्रत नियम कर, नव तत्वके ज्ञाता हुए मूलगच्छ खरतर । (समंदरिया गोत्र) ___पारकर देश पद्मावती नगरके शमीपस्थ ग्राममैं सोढाराजपूत, समंदसी, जिस्के ८ पुत्र थे, देवसी १ रायसी २ खेतसी ३ धन्नो ४ तेजमाल ५ हरि ६ भोमो ७ करण ८ लेकिन उनके पास द्रव्य नहीं, कृषाण कर्मसें वृत्ति करे, ‘धन्ना पोर वालसें ऋण लेवे, धान्यकी निष्पत्ति होनेसें, वृद्धि सहित द्रव्य दे देवे, कान्तार ( काल गिरनेसें समंदसीको अत्यन्त कष्ट आपदा भोगनी हो, एक समय समंदसीको विहार करते मुनिपती श्रीजिन वल्लभ सूरिः मार्ग मैं मिले, भव्य परणति होनेसें, वन्दना करी, गुरूने धर्म लाभ दिया, समंदसीने पूछा, हे मुनिवर, मेरा दुःख कब निवर्त्तन होगा, गुरूने कहा, प्राणी मात्र शुभ कृत्यसें सुख और पाप कृत्यसें दुःख भोगता है, यदि तूं सुखाभिलाषी है तो धर्म कर वह अहिंसा मूल धर्म है अहिंसाका स्वरूप निवेदन करा, और नित्य प्रति उभय काल एकान्त स्थलमैं बैठकर सामायक सम भावसें करना, शत्रु ऊपर शत्रुता नहीं, मित्र ऊपर मित्र भाव नहीं राग द्वेषकों त्याग समाधिमैं लीन मन करनेसें आत्म गुणसामायक उदय होता है, इस प्रकार धर्मके रहस्यकों श्रवण कर, समंदसी, गृहस्थ धर्मानुकूल दोनों व्रत गुरूसें ग्रहण · करे, उभय काल सामायक करता है प्राणिमात्रकी दया करता है, गुरू विहार कर गये, ये स्वरूप देख साधर्मी जानकर, धन्ना पोरबाल, द्रव्यो पूर्ण सहायता देने लगा, और ८ पुत्रोंको विद्याभ्यास कराने लगा, भोजन वनसें न्यूनता नहीं रक्खी, तब समंदसी विचारने लगा अहो धर्मका महत्व
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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