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महाजनवंश मुक्तावली
-डाला, और मनुष्य ब्राह्मणोंकी कुंवारी लड़कियोंका, बलात्कार शील तोड़ते फिरता है बाहर सूर्य नारायण गवर्मेन्टके राज्यमैं ऐसा काम करणेवालोंकों' जवरजन्नाके कायदेसें, जरूरही सजा होती, उस वक्त उस कन्या के पितानें सूर्यको श्राप देणे रूप सजा देनी लिखी है, खैर हमको, इतिहास यथार्थ जो भया सो लिखा है किसीके खंडन से तालुक नहीं, भोजकोंके ६ गोत्र पीछेसें १० जातमैं मिले हैं, इसमैं २ गोत्र तो गूजर गोड़ ब्राह्मन थे, ४ पुष्करणे ब्राह्मण, ये ६ जात मालवदेशके वडनगर मैं, श्री जिनदत्त सूरिजी पधारे, तब मरी हुई गऊ, जिन मन्दिर के सामनें, घर दी, उसको दादा साहबनें, परकाय प्रवेश विद्यावलसें, उठाकर, रुद्रके स्थान पर जा गिराई, और भी इन ब्राह्मणोंने बहुत उपद्रव करणा शुरू करा, तब उहांके क्षेत्राधिष्ठायक बीरोंकों, आज्ञा दी के, तुम इन सब ब्राह्मणों को समझाओ, उन बीरोंने उन सब ब्राह्मणोंकों, उन्मत्त पागल बणा दिये, वो नंगे होकर बुरी चेष्टासें भटकणे लगे, पीछे वडनगरके राजा, तथा प्रजानें, श्री जिनदत्त सूरि : जीसे, बिनती करी, तब गुरूनें कहा, कि ये लोक सदाके लिए, देव गुरू की, टहल करते रहैं, और मेरे किये हुए, महाजनोंके, भिक्षुक रहैं तो, अच्छे हो जाते हैं, सम्बंध, और भोजन, आगे जो भोजक है, उन्होंके साथ, इन्होंको करणा होगा, राजा प्रजा जमानत करी, तत्काल, वो लोक अच्छे हो गये, इन्होंमें राजाका मुख्य गुरू ब्रह्मसेन, जिसका पुत्र देववृत, सो देवेरा भोजक कहलाया, जिसकी सन्तान वीकानेर मैं हंसावत, तथा आदि सरिया वजते हैं, इन सोलह गोत्रोंका लाग दादा साहबनें समस्त महाजनों पर लगा दिया, पहिली १८ गोत्र पर ही था, महाजन लोक राज्यके कारबारी थे, इससे शिव विष्णुका मन्दिर भी इन्होंके, सुपर्द करवा दिया, प्रायः भोजक देवीके उपासक हैं, मारवाडके ओसवालोंके पास दान परणे मरणे लेते हैं, टाड साहबने राजपूत इतिहासमैं इन्होंका होना, अन्य ही प्रकारका लिखा है, कइयक इन्होंमैं, कवि हैं, विद्या न्यून है, इस जातिमैंसे जगत सेठजीके पास, कइ यक भोजक विद्वान पंडित गये थे, उस दिनसें, मुरसिदाबादमैं, --भोजकोंकों पांडेजी कहा करते हैं, इतने कर संक्षेप इतिहास महाजन १८
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