SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ __महाजनवंश मुक्तावली गोत्रोंका, तथा १६ गोत्र भोजकोंका, दिखलाया, इस बातकों हुए कितने बर्ष हुए, सो प्रमाण लिखते हैं, ओसियां नगरीके नामसें महाजनोंकों ओस-. वाल संज्ञा भई, राजा उपलदेवका कराया हुआ, बीर प्रभूका मन्दिर ओसि-.. यांमैं, आंसल राजाका कराया हुआ, भीनमालमैं, अभी विद्यमान है, माहेश्वर कल्पद्रुम ग्रंथमैं, ओसवालोंके होणेका जमाना इस तरह लिखा है, . सवईयाच्छन्द . श्रीबर्द्धमान जिन पछै बर्ष बावन पद लीघो, श्रीरत्न प्रभुसूरि नाम तास सत् गुरूवत दीधो, भीनमालसू ऊठिया जाय ओसियां वसाणां, क्षत्री हुआ साख अढार उठै ओसवाल कहाणां, एक लाख चौरासी सहस्र घर; राज- . . कुली प्रति बोधिया, रतन प्रभू ओस्या नगर ओसवाल जिण दिन किया ।११, . प्रथम साख पमार, सेससी सोद सिंगाला, रण थम्भा राठोड़ वंसच ऊआन वचाला, दइया सोलंखी सो नगरा कछावा धन गोड कहीजे, जादम हाड़ा जिंद लाज मरजादलही जै, । खरदरापाट औपे खरा, लेणा पटाज लाखरा, । एक दिवस इता महाजन भया सूर बड़ा बडीसाखरा ॥ २॥ __ इसके पीछे खरतर गच्छाचार्योंने प्रायः बहुत गोत्र प्रति बोधे, किंचित् अल्प गोत्र, और २ आचार्योंने प्रति बोधे सो सब, इन्हों मैं, मिलते गये,.. सुनते हैं, सम्बत् सोलहसे मैं खरतर गच्छाचार्यसे, मोहणोत गोत्र, प्रति बोधे गया, वस जाता जम्बूले गया, और आड़ी टाटी दे गया, वो न्याय इस गोत्रसें हुआ, फिर कोई भी गोत्र राजपूत माहेश्वरीया ब्राम्हनों में से नहीं थापा गया, ये प्रताप सब तत्व दृष्टिसें देखोतो, जिन प्रतिमानिन्दकोंसे हुआ, कालका महात्म इन्होंका आचार विचार देख, राजपूतमाहेश्वरी और ब्राम्हण लोक, जैनधर्मसें, घृणा करणे · लग गये, इस बखत जो जैन-- धर्म चल रहा है, सो सब प्रताप जती आचार्य महा राजोंका है, अब तो वाजे महाजन भी ऐसे कठिन बनगये हैं सो जिन धर्मकी प्राप्ति कराणे वालोंकी, सन्तानसें, बेमुख होगये हैं, और अपने बडेरोके बचनोंकों, भूल गये हैं, लायक मन्द लोकोंका, बाप, और बात, एकही है, सवइयेमें लिखा है कि श्रीवर्धमान भगवानके निर्वाण पहुंचे बाद ५२ वर्ष पीछे, रत्नप्रभ.
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy